खेल संघों के सिर पर लटकी खेल कोड 2011 की तलवार

sports federations of india

‘ स्पोर्ट्स कोड 2011’ का अनुपालन नहीं करने वाले राष्ट्रीय खेल संघों को सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि से हाथ धोना पद सकता है| दिल्ली उच्च न्यायलय के एक फैसले के तहत देश के ज्यादातर खेल संघ नियमों की अनदेखी कर रहे हैं| वर्षों से उन्हें खेल कोड का पालन करने और नियमानुसार चलने के बारे में निर्देश दिए जाते रहे हैं लेकिन अधिकांश ने सरकारी दिशा निर्देशों और भारतीय खेल प्राधिकरण के नियमों को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया|

चूँकि कोर्ट नाराज है और सरकार को भी खेल कोड को गंभीरता से लागू करने के बारे में कह दिया गया है, ऐसे में अनेक भारतीय खेलों को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है| ऐसा इसलिए क्योंकि देश के तमाम खेल संघों की हालत भिखारियों जैसी है| हर छोटी बड़ी जरुरत के लिए उन्हें सरकार के सामने हाथ पसारना पड़ता है। वर्ष 2022 क्योंकि कॉमनवेल्थ खेलों और एशियाई खेलों का साल है इसलिए खेल संघों की मुसीबतें बढ़ सकती हैं। सरकारी सहायता पर अपना अस्तित्व बचाने वाले खेलों के लिए आने वाले दिन खासे भारी पड सकते हैं।

भारतीय खेलों पर सरसरी नजर डालें तो क्रिकेट ही एकमात्र ऐसा खेल है जिसके पास पैसे का अम्बार लगा है। क्रिकेट के आईपीएल आयोजन का बजट ही देश के खेल बजट से कहीं ज्यादा है। ज़ाहिर है क्रिकेट की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लेकिन बाकि खेलों का क्या होगा? एक तो हर खेल गुटबाजी का शिकार है। ऊपर से सभी खेलों की दाल रोटी सरकार के खेल बजट के दमपर चल रही है| यह सही है कि एशियाई खेल फिलहाल ताल गए हैं लेकिन खेलों का सिलसिला साल भर चलता रहता है, जिसके लिए बड़ी धनराशि की जरुरत होती है।

पिछले कुछ दिनों में देश के दो सबसे लोकप्रिय खेलों फुटबाल और हॉकी के घोटाले सार्वजनिक हुए हैं। फुटबाल फेडरेशन के अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और हॉकी इंडिया के पूर्व अध्यक्ष डाक्टर नरेंद्र बत्रा पर गंभीर आरोय लगे हैं। दोनों ने खेल कोड की अवहेलना कि और फेडरेशन को अपनी बपौती की तरह चलाया। चूँकि दोनों महाशयों पर कोर्ट ने अपदस्त कर दिया है इसलिए इन खेलों को बुरे दिन देखने के लिए तैयार रहना होगा|

भारत में ज्यादातर ऐसे खेल हैं जिनमे गुटबाजी का खेल खेला जा रहा है और जिनकी राज्य इकाइयां गैर जिम्मेदार लोगों द्वारा चलाई जा रही हैं। हॉकी, फुटबाल, वॉली बॉल, कबड्डी, कराटे, ताइक्वांडो, जूडो, बास्केट बॉल, जिम्नास्टिक और कई अन्य खेलों में कायदे कानून नाम कि चीज बची ही नहीं| ज्यादातर खेल संघों की राज्य इकाइयों में जंगल राज चल रहा है| इन खेलों से जुड़े खिलाडियों, कोचों और सपोर्ट स्टाफ को फण्ड की कमी के चलते बड़ी परेशानी का सामना करना पद सकता है|

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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