दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और 150 करोड़ की आबादी वाला देश 2036 के ओलम्पिक खेलों की मेजबानी के लिए कमर कसे हुए हैं। हालांकि ओलम्पिक जैसे आयोजन की मेजबानी मिलना हंसी खेल नहीं है लेकिन प्रयास करने में बुराई नहीं है। इतना जरूर है कि मेजबानी मिले या नहीं मिले लेकिन इस प्रयास में करोड़ों का खर्च जरूर होगा, जिसे शायद आम और खास नागरिक और करदाता की जेब से ही निकाला जाएगा।
अब जरा 2025-26 के आम बजट को भी देख लिया जाए, जिसमें खेल मंत्रालय के लिए लगभग 3794 करोड़, खेलो इंडिया का 1000 करोड़ और खेल संघों के लिए 400 करोड़ की बजट राशि निश्चित है। बजट निर्धारण इस आधार पर किया गया है, क्योंकि अगले वर्ष ओलम्पिक, एशियाड और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसा कोई महा आयोजन नहीं है।
खेल बजट पर आगे बढ़ने से पहले देश की क्रिकेट को संचालित करने वाले बीसीसीआई के 2023-24 के बजट को देखें तो वर्ष 2023-24 में क्रिकेट बोर्ड ने 18700 करोड़ रुपये कमाए, जिसमें से 4298 करोड़ रुपये का टैक्स भी भरा। जीएसटी के रूप में 2038 करोड़ का भुगतान अलग से किया गया।
हालांकि ओलम्पिक खेलों और क्रिकेट की बोर्ड की तुलना नहीं हो सकती क्योंकि बीसीसीआई का अपना अलग अस्तित्व और अलग व्यवस्था है और उस पर किसी प्रकार का सरकारी नियंत्रण नहीं है। फिर भी अन्य खेल क्रिकेट को हमेशा से कोसते आ रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि देश के 50 से 60 खेलों का जितना कुल बजट निर्धारित है उससे कहीं अधिक क्रिकेट की संचालक संस्था बीसीसीआई टैक्स देती है। हैरानी वाली बात यह है कि केंद्रीय बजट में खेल और युवा मामलों के लिए आवंटित राशि में 352 करोड़ की वृद्धि की गई, जिसे ‘भारी’ वृद्धि बताया जा रहा है।
यह ना भूलें कि खेल बजट का बड़ा हिस्सा देश की भ्रष्ट खेल इकाइयों के अवसरवादी हड़प जाते हैं या कोर्ट-कचहरियों की भेंट चढ़ा देते हैं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |