खेल अवार्डों का असल खेल!

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भारत के श्रेष्ठ और सफलतम खिलाड़ियों, कोचों और खेल हस्तियों को दिए जाने वाले राष्ट्रीय खेल अवार्ड शुरू से ही विवादों में रहे हैं। शायद ही कोई ऐसा साल रहा हो, जब इन अवार्डों पर उंगली ना उठी हो। वर्ष 2024-25 के खेल अवार्ड भी बिना किसी शोर-शराबे के नहीं बांटे गए। पहले मनु भाकर का नाम खेल रत्न से छूट गया था। खूब हंगामा हुआ। मनु और उसके परिजनों ने अवार्ड समिति और सरकार पर उंगलियां उठाई। जैसे-तैसे मनु भाकर का मामला सुलटा लिया गया लेकिन नाराजगी वाला मामला यहीं नहीं रुका। पैरा तीरंदाज हरविंदर सिंह ने पेरिस में स्वर्ण पदक जीता लेकिन उसे ध्यानचंद खेल रत्न नहीं दिया जाना दोहरे मानदंड अपनाने का मामला नहीं तो और क्या है?

अब कंपाउंड तीरंदाज ज्योति सुरेखा वेन्नम ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने उसके रिकॉर्ड और उपलब्धियों का हवाला देते हुए खेल मंत्रालय और उसकी अवार्ड कमेटी को फिर से विचार करने का निर्देश दिया है। ज्योति का दावा यह है कि उसने विश्व चैंपियनशिप, एशियाई खेलों और एशियन चैंपियनशिप में ढेरों पदक जीते हैं और वह खेल रत्न की प्रबल दावेदार है, जबकि उसके मुकाबले कम सफल खिलाड़ी कब का सम्मान पा चुके हैl

मनु भाकर के मामले को समय रहते निपटा लिया गया लेकिन जिस प्रकार से दो ओलम्पिक पदक विजेता मनु को खेल रत्न अवार्डियों में शामिल नहीं किया गया था उसे लेकर विवाद होना स्वाभाविक था। हालांकि बाद में मनु ने स्वयं भी माना कि उससे भी गलती हुई थी। अब आम धारणा यह बन गई है कि खेल अवार्ड राजनीति के शिकार हैं। खेल रत्न ही नहीं अर्जुन अवार्ड, द्रोणाचार्य अवार्ड, लाइफ टाइम ध्यानचंद अवार्ड और खेल प्रोत्साहन अवार्डों की राजनीति सालों-साल बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि असंतुष्ट भी बढ़ रहे हैं। हो सकता है कि अवार्ड कमेटी में कम जानकार और अयोग्य लोगों की घुसपैठ से खेल बिगड़ रहा हो!
(लेखक अवार्ड कमेटी का सदस्य रह चुका है).

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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