स्वतंत्रता आजाद भारत के गुलाम खेल!

Independence day

दिवस पर विशेष:

राजेंद्र सजवान

पेरिस ओलम्पिक के समापन के बाद दुनिया के ज्यादातर देशों ने क्या पाया, क्या खोया और 2028 के अगले ओलम्पिक खेलों के लिए क्या कुछ करना है, जैसे मुद्दों को अभी से गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। भले ही आगामी लॉस एंजेलिस खेलों के लिए चार साल का समय है लेकिन जो देश नए रिकॉर्ड बनाने और दुनिया को अपनी ताकत और खेल कौशल का लोहा मनवाने के लिए जाने जाते हैं, उनकी तैयारियां आज और अभी से शुरू हो चुकी हैं। लेकिन अपनी आजादी के 78वें साल में दाखिल हो चुका भारत महान अभी अंदरूनी गुटबाजी, छह पदकों की अकड़ दिखाने, आरोपों-प्रत्यारोपों और एक-दूसरे की टांग खिचाई में लगा है।
जैसा कि हर बड़े खेल आयोजन के बाद होता है, कुछ महीने पदक विजेताओं की आवभगत और उनके प्रदर्शन को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने और वाहवाही लूटने में लग जाएंगे। तत्पश्चात देश के खेल आका नींद से जागेंगे और देशवासियों के खून पसीने की कमाई को खिलाड़ियों की तैयारी की बजाय खेल महासंघों की गंदी राजनीति में बर्बाद करेंगे। इस उठा पटक में चार साल कब बीत जाएंगे पता नहीं चलेगा।
यदि भारत सरकार, उसके पंडित, खेल मंत्रालय, खेल महासंघ और तमाम खेल इकाइयां पेरिस ओलम्पिक के शर्मनाक प्रदर्शन से सबक लेना चाहते हैं तो भारतीय खेलों को सबसे पहले उनके भ्रष्ट तंत्र से आजाद करने की जरूरत है। शुरुआत ग्रासरूट स्तर से की जाए तो बेहतर रहेगा। इस संवाददाता ने जाने-माने कोचों, द्रोणाचार्य, अर्जुन और खेल रत्न अवार्डों से सम्मानितों से बातचीत के बाद पाया कि उन्हें भावी खिलाड़ियों को तैयार करने के लिए सरकारी सहयोग नहीं मिल रहा। प्रशासन के कृपा पात्र खेलों पर हावी हैं और वे ही देश के खेलों के खैरख्वाह बने हुए हैं। उम्र की धोखाधड़ी, चयन में धांधली, सत्ता और पद का दुरुपयोग, महिला खिलाड़ियों का यौन शोषण और निरंकुशता भारतीय खेलों की असाध्य बीमारियां बन चुके हैं।
भारतीय खिलाड़ियों को सरकार द्वारा पर्याप्त सुविधाएं दी जा रही है लेकिन वही लाभ उठा रहे हैं जो वर्षों से जमे हुए और फ्लॉप हैं। नए और उभरते खिलाड़ियों के लिए आगे बढ़ने के रास्ते बंद पड़े हैं या कठिन हैं। कुछ पूर्व खिलाड़ियों और पदक विजेताओं की राय में ओलम्पिक वर्ष और स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय खेल देशहित में आगे बढ़ने का प्रण करें तो कुछ एक सालों में भारत भी अग्रणी खेल राष्ट्र बन सकता है। बस जरूरत ईमानदार प्रयासों की है।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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