स्कूल गेम्स फेडरेशन आफ इंडिया: स्कूली खेलों की हत्यारी

School Games Federation of India

दुनिया भर के ओलंम्पिक और विश्व चैम्पियन खिलाडियों का मानना है कि जिस देश में स्कूली और ग्रासरूट खेलों को बढ़ावा दिया जाता है उन्हें अधिकाधिक पदक जीतने से कोई नहीं रोक सकता । चीन, अमेरिका, जर्मनी, रूस, फ़्रांस , इंग्लैण्ड आदि देशों के अधिकाधिक खिलाडी इसलिए ज्यादातर पदक जीत ले जाते हैं क्योंकि इन देशों का खेल आधार स्कूली खेलों पर टिका है । वैसे अपने देश में में हमारे नेता, अभिनेता और तमाम जिम्मेदार लोग भी इसी प्रकार की बातें करते आ रहे हैं लेकिन सच्चाई यह है कि आज तक देश की किसी भी सरकार ने स्कूली खेलों को प्राथमिकता नहीं दी । नतीजा सामने है , सत्तर से भी ज्यादा खेलों की दुकान चलाने वाले भारत में तीन चार खेलों को छोड़ बाकी का वर्तमान और भविष्य अँधेरे में डूबा है ।

हो सकता है देश के कुछ खेल आकाओं और सरकारी पिठुओं को यह बात रास न आए लेकिन यही सच है । वरना क्या कारण है कि पिछले तीन सालों से देश की स्कूली खेल गतिविधियां ठप्प पड़ी हैं ? चलिए मान लिया कि कोरोना के चलते साल भर खेल नहीं हो पाए । लेकिन अब तो पूरी दुनिया खेल रही है । फिर भारतीय स्कूली खेलों को क्या हो गया है , क्यों हमारे खिलाडी घरों और स्कूल की चारदीवारी में कैद हो गए हैं? इसलिए क्योंकि स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफइंडिया(एसजीएफआई ) बीमार है । उसे लूट खसोट, भर्ष्टाचार और गुटबाजी की बीमारी लग गई है ।

सरकार के खेल मंत्रालय को एसजीएफआई की करतूतों का पता है, फिरभी यदि कोई हल नहीं निकल पा रहा , तो इसलिए क्योंकि कई सालों से देश के खेलों को लूटने वालों की जड़ें बहुत मजबूत हैं । कुछ समय पहले यह लड़ाई दिल्ली बनाम आगरा की थी लेकिन सुशील कुमार के जेल जाने के बाद से आगरा अब महाराष्ट्र से भिड़ गया है । दोनों बुरी तरह गुत्थम गुत्था हैं । एसजीएफ आई की तमाम सदस्य इकाइयां मौन हैं और तमाशा देख रही हैं । गुटबाजों के खबरिया बता रहे हैं कि खेल मंत्रालय सब कुछ जानते हुए भी अनजान बना हुआ है । लेकिन यहां खेल मंत्रालय का खेल तब तक नहीं चलने वाला जब तक दोनों धड़े मिल बैठ कर अध्यक्ष का चुनाव नहीं करा लेते , जिसकी सम्भावना कम ही नजर आती है ।

लेकिन मामला देश के खेल भविष्य और भावी खिलाडियों के भविष्य का है । यह सही है कि खेल मंत्रालय ने खेलो इंडिया का बैनर खड़ा कर कुछ एक स्कूली खिलाडियों को अवसर दिया है लेकिन बिना स्कूली खेलों के आयोजन के काम नहीं चलने वाला । अच्छे खिलाडी तब ही निकल कर आएंगे जब विधिवत रूप से एसजीएफआई की गतिविधियां शुरू होंगी , जिसकी संभावना नजर नहीं आ रही । एक गुट कह रहा है कि जान बूझकर मामले को लटकाया जा रहा है , क्योंकि आगरा की दिल्ली दरबार में गहरी पैठ है । कुछ एक आरोप लगा रहे हैं कि एसजीएफआई दलगत राजनीति की शिकार हो गई है और कई खेल संघों की तरह स्कूली संस्था भी नेताओं की गुलाम बनने जा रही है । यदि ऐसा हुआ तो भारतीय खेलों की बुनियाद पूरी तरह ढह जाएगी ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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