कतर विश्वकप के लिए बस चंद दिन बचे हैं । दुनिया के श्रेष्ठ फुटबाल राष्ट्र अपने देश की आन बान और शान के लिए फुटबाल महाकुंभ में उतरने के लिए कमर कस चुके हैं। बेशक, कोई एक देश विजय श्री का वरण करेगा लेकिन, जिन्हें भाग लेने का मौका मिला है सभी का स्तर ऊंचा है और किसी को भी कमतर आंकना ठीक नहीं होगा।
भले ही भारत इस महोत्सव में भाग नहीं ले रहा लेकिन भारतीय भागीदारी का नेतृत्व वे लाखों करोड़ों फुटबाल प्रेमी करेंगे जोकि इस खेल के दीवाने हैं। पिछले कई सालों से यह सिलसिला यूं ही चल रहा है। हर चार साल बाद विश्व कप का आयोजन होता है और भारतीय फुटबाल प्रेमी बस तालियां बजा कर अपना गम गलत कर लेते हैं।
सवाल पैदा होते हैं कि कोई भी एशियाई देश आज तक विश्व कप क्यों नहीं जीत पाया? भारतीय महाद्वीप का कोई देश क्यों विश्व कप नहीं खेल पाया और भारत को कब विश्वकप खेलने का सौभाग्य मिलेगा?
हाल ही में दिल्ली के अंबेडकर स्टेडियम में आयोजित वेटरन खिलाड़ियों के एक टूर्नामेंट में चैंपियन नेपाल, बांग्लादेश और मेजबान भारतीय खिलाड़ियों से जब इस बारे में बात हुई तो सभी ने एकमत से माना कि दक्षिण एशियाई देश फुटबाल में सिर्फ तालियां बजाने के लिए शामिल हैं । इन देशों में खेल के लिए समुचित माहौल नहीं बन पाया है।
नेपाल के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों बाल गोपाल महाराज, उपेंद्र मान सिंह, राकेश श्रेष्ठा और जमानु राय के अनुसार उनके देश में फुटबाल प्रोत्साहन के लिए कुछ भी नहीं हो रहा। भारतीय क्लब फुटबाल में भाग ले चुके इन खिलाड़ियों का मानना है कि भारत की तुलना में उनके देश की फुटबाल बेहद गरीब है। जहां एक ओर भारत में कई करोड़ के क्लब हैं और आइएसएल में खेल कर खिलाड़ी करोड़ों कमा रहे हैं तो नेपाल की फुटबाल का पूरा बजट भी एक भारतीय क्लब से कम होगा।
बांग्लादेश के पूर्व खिलड़ी और कोच शाहिद हुसैन और जमालुद्दीन को इस बात की हैरानी है कि भारतीय फुटबाल जहां की तहां खड़ी है। मेहमान खिलाड़ियों को लगता है कि भारत में फुटबाल गलत हाथों में खेल रही है।
इसमें दो राय नहीं कि भारत में फुटबाल पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन बड़े आयोजन और करोड़ों खर्च करना ही काफी नहीं है। कुछ भारतीय वेटरन खिलाड़ियों की राय में भारत और उसके पड़ोसी देशों में इस खेल के पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण ग्रास रूट का भ्रष्टाचार है। उम्र की धोखाधड़ी आगे चल कर बहुत भारी पड़ती है। एज फ्रॉड के अलावा चयन में धांधली और राज्य तथा अपने देश और विदेश से ट्यायट राष्ट्रीय फुटबाल महासंघों का भ्रष्टाचार अन्य कारण हैं।
दिल्ली के वेतन खिलाड़ी सलीम, असलम, भूपेंद्र ठाकुर, प्रमोद रावत, कमल, रविंद्र रावत, विजेंद्र , भीम भंडारी आदि को लगता है कि भारतीय फुटबाल का स्तर सुधरने की बजाय बिगड़ रहा है। यही हाल नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका आदि देशों का है। सभी एकराय से मानते हैं कि भारत में बेहतर सुविधाओं के बावजूद इसलिए प्रगति नहीं हो पाई क्योंकि फुटबाल को संचालित करने वालों की नीयत में खोट है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |