देश और दुनिया भर के फुटबाल विशेषज्ञ भारतीय फुटबाल की बदहाली देख कर हैरान परेशान हैं। पिछले पांच दशकों से सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन खेल बिगड़ता जा रहा है। एक से बढ़ कर एक विदेशी कोच आ रहे हैं लेकिन उनकी कोशिशें फेल हो रही हैं। ऐसा क्यों है? क्यों भारतीय फुटबाल सुधरने की बजाय बरबादी की कगार तक पहुंच गई है?
कुछ पूर्व खिलाड़ियों और फुटबॉल जानकारों की राय में भारतीय फुटबाल के कर्णधार और विदेशी एक्सपर्ट्स बीमारी को समझ नहीं पा रहे और इलाज करने पर तुले हैं। उन्हें पता नहीं चल पा रहा कि भारतीय फुटबाल की जड़ों को कीड़ा लग गया है। फुटबाल फेडरेशन , उसकी सदस्य इकाइयां, फुटबाल के कारोबारी और फुटबाल से जुड़े तमाम औद्योगिक घरानों को इंडियन सुपर लीग, आई लीग और कुछ अन्य आयोजनों की चिंता तो है लेकिन संतोष ट्रॉफी राष्ट्रीय फुटबाल, वर्षों से वीरान पड़े राज्य और राष्ट्रीय आयोजनों से किसी को जैसे कोई सरोकार नहीं है। जहां तक सबसे बड़ी कमजोरी की बात है तो छोटी आयुवर्ग के तमाम आयोजन या तो ठप्प पड़े हैं या इस क्षेत्र की तरफ किसी का ध्यान नहीं है।
खेल के गिरते स्तर के बारे में अलग अलग तर्क दिए जाते हैं । लेकिन एक बड़ा वर्ग कह रहा है कि जबसे देश ने आई लीग और आईएसएल का गीदड़ पट्टा धारण किया है , रही सही फुटबाल भी बर्बाद हो गई है। बड़े नाम वाले क्लबों पर धनाढ्यों और औद्योगिक घरानों का कब्जा है उनका मकसद फुटबाल सुधार कदापि नहीं है। उन्हें नाम और पैसा कमाना है। हैरानी वाली बात यह है कि आईएसएल और आई लीग की चोंचलेबाजी के चलते ग्रासरूट फुटबाल को पूरी तरह भुला दिया गया है।
देश की फुटबाल को चलाने वाली फेडरेशन की करतूतें जगजाहिर हैं। आईएसएल में खेलने वाले क्लब अपने खिलाड़ियों को राष्ट्रीय टीम के लिए रिलीज नहीं करते क्योंकि खिलाड़ी उनके बंधुआ मजदूर बन कर रह गए हैं। अक्सर देखा गया है कि हमारे स्टार खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर के आयोजनों में खेलते दिखाई नहीं देते। यही कारण है कि आम फुटबाल प्रेमी अपनी फुटबाल से दूर हो रहा है। चूंकि सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया है इसलिए भारतीय फुटबाल लगातार नीचे लुढ़क रही है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |