भले ही भारतीय मुक्केबाज अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में पदक जीत रहे हैं और खूब नाम कमा रहे हैं लेकिन मुक्केबाजी से जुड़े बहुत से कोच , खिलाड़ी और खेल जानकार इतने सब से संतुष्ट नहीं हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय मुक्केबाजी की कामयाबी की रफ्तार बहुत धीमी है। वरना देश का पहला द्रोणाचार्य अवार्ड पाने वाला गुरु मुक्केबाजी से ही था । नाम है स्वर्गीय ओ पी भारद्वाज।
भारतीय मुक्केबाजी के पितामह और देश के लिए ओलंपिक पदक की बुनियाद खड़ी करने वाले ओम प्रकाश भारद्वाज का पिछले साल लंबी बीमारी के बाद निधन हुआ था। बेहद शांत, मृदुभाषी, गुणवान और खेल की बारीकियों के जानकार ओपी भारद्वाज का जाना मुक्केबाजी के लिए इसलिए बड़ा नुकसान कहा गया क्योंकि वर्षों तक उनके अनुभव खेल के काम आते रहे। उनके करीबी और शिष्यों के अनुसार गुरु जी ने राहुल गांधी और ज्योतिराजे सिंधिया जैसे नेताओं को भी मुक्केबाजी के गुर सिखाए थे।
भारद्वाज उस वक्त मुक्केबाजी पटल पर अवतरित हुए जब भारतीय मुक्केबाज किसी बड़ी सफलता के लिए छटपटा रहे थे। एमईजी से सेवानिवृत्त होने के बाद वह एनआईएस पटियाला में चीफ रहे। उन्होंने 1965 से 1989 तक राष्ट्रीय कोच का दायित्व निभाया। इस अवधि में उन्होंने देश के टाप मुक्केबाजों को अत्याधुनिक तकनीक के गुर सिखाए।
ओलंपिक, वर्ल्ड कप, एशियाड, कॉमनवेल्थ खेलों, किंग्सकप और अनेक आयोजनों में उन्होंने भारतीय टीमों की कमान संभाली और देश के लिए पदक जीतने वाले सैकड़ों मुक्केबाजों का मार्गदर्शन किया। डिंको सिंह, राजकुमार सांगवान, धर्मेंद्र यादव, वेंकटेश देवराजन, गोपाल देवांग, द्रोणाचार्य जयदेव बिष्ट जैसे मंजे हुए नाम उनकी देखरेख में पहचान बनाने में सफल रहे।
सच तो यह है कि भारतीय मुक्केबाजी आज जहां खड़ी है उसका बड़ा श्रेय उन्हें जाता है। पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान(एनआई एस) में अलग से मुक्केबाजी ट्रेनिंग डिपार्टमेंट की स्थापना उन्हीं के द्वारा की गई गई थी। एक अनुमान के अनुसार उन्होंने लगभग पंद्रह हजार मुक्केबाजों को गुर सिखाए। पुरस्कार स्वरूप उन्हें देश का पहला द्रोणाचार्य सम्मान मिला, जिसे उन्होंने 1985 में कुश्ती गुरु भागवत और ओएम नाम्बियार के साथ ग्रहण किया।
हालांकि ओपी ने हमेशा मुक्केबाजी कोचों को बढ़ावा दिया, उनके लिए लड़ाई भी लड़ी लेकिन कुछ एक अवसरों पर उन्होंने एनआईएस कोचों और अन्य खेलों के द्रोणाचार्यों का बचाव भी किया और उनके हक की लड़ाई में हमेशा आगे रहे। हॉकी ओलंपियन और द्रोणाचार्य एमके कौशिक जब अपनी ही कुछ महिला खिलाड़ियों के आरोपों से घिर गए तो ओपी ने आगे बढ़ कर उनका बचाव किया और उनके आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि कुछ लोग कौशिक की कामयाबी से जलते हैं और उन्हें फंसाने के लिए कुचक्र रच रहे हैं।
यह अजब संयोग है कि उनसे कुछ दिन पहले ही कौशिक भी भगवान को प्यारे हुए । कौशिक ने हमेशा ओपी के गुरुत्व गुणों का सम्मान किया। देश के अधिकांश द्रोणाचार्य और अर्जुन अवार्डी उनके बेहद करीबी रहे क्योंकि वह कोचों और खिलाड़ियों के हक की लड़ाई बड़ी ही विनम्रता और सूझबूझ से लड़ते रहे।
राहुल गांधी के गुरु:
आज भले ही राहुलगांधी और ज्योतिराजे सिंधिया बड़े नाम वाले नेता हैं और अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ जुबानी लड़ाई लड़ते हैं लेकिन एक समय वे भी ओपी के शिष्य रहे थे।
उस समय जबकि ओपी एक मंजे हुए कोच की पहचान बना चुके थे, युवा राहुल गांधी भी उनसे मुक्केबाजी सीखने आते थे। तब एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था ‘राहुल जब भी आते हैं उन्हें पैर छूकर प्रणाम करते है। वह मुझे बाकायदा गुरु जी कहते हैं।’ ज्योतिराजे सिंधिया भी उनसे सीखने आते थे।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |