एक सिल्वर और पांच ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाला भारत महान खेलों में महाशक्ति बनने का सपना देख रहा था, जिसको पेरिस के प्रदर्शन से झटका जरूर लगना चाहिए और सबक सीखना चाहिए । लेकिन जिस प्रकार सरकार के चारण भाट अपने-अपने अंदाज में आंकड़े परोस कर देश के खेल ठेकेदारों और सरकारी प्रतिनिधियों का बचाव कर रहे हैं, उसे लेकर एक वर्ग न सिर्फ नाराज है, अपितु गंदी राजनीति करने का आरोप भी लगा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि नीरज चोपड़ा ने फिर से देश को गौरवान्वित किया, हॉकी टीम के पदक का महत्व भी यह देश समझता है। अमन सहरावत ने कुश्ती को एक बार फिर ओलम्पिक पटल पर जिंदा रखा तो पदक विजेता निशानेबाजों को 21 तोपों की सलामी दी जा सकती है लेकिन बाकी भीड़ किसलिए गई थी? 117 खिलाड़ी और मात्र छह पदक, जिनमें गोल्ड शामिल नहीं है। नतीजा यह निकला कि भारत पदक तालिका में 71वें स्थान पर छिटक गया। क्योंकि पाकिस्तान ने एकमात्र गोल्ड जीता और 54वें स्थान पर रहा।
ओलम्पिक में कुल 84 देशों ने पदक जीते, जिसमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की 150 करोड़ की आबादी के प्रतिनिधि एक भी गोल्ड नहीं जीत पाए। इन छह पदकों को पाने के लिए देश की सरकार ने लगभग 500 करोड़ रुपये खर्च किए। हैरानी वाली बात यह है कि देश के खेल तंत्र का रिमोट थामने वाले अपने खिलाड़ियों के प्रदर्शन को शानदार बता रहे हैं। उन्हें इस बात का भी मलाल नहीं कि एक सोने के पदक ने अपने पड़ोसी देश को भारत के सिर पर सवार कर दिया। हमेशा की तरह खेल मंत्रालय, साई और खेल फेडरेशन अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। तर्क दिया जा रहा है कि हमारे खिलाड़ी छह स्पर्धाओं में चौथे स्थान पर रहे और पदक से चूक गए। उन्हें कौन समझाए कि मिल्खा सिंह और पीटी उषा चौथे स्थान को लेकर वर्षों तक शान बघारते रहे।
कुल मिलाकर भारतीय खेलों को कंट्रोल करने वाले शातिर पेरिस ओलम्पिक के समापन से पहले ही बड़े-बड़े तर्क और बहाने खोज चुके थे। वे कह रहे हैं कि भारतीय खेल प्रगति कर रहे हैं। खिलाड़ियों का चौथे, छठे स्थान पर आना उन्हें विकास लगता है। ज्यादातर एक्सपर्ट और बिकाऊ मीडिया खिलाड़ियों का बचाव कर खामियों को छिपा रहे हैं, हर कोई जानता है। कुछ ढलते और बूढ़े खिलाड़ियों को यहां तक ढांढस बंधाया जा रहा है कि चार साल बाद वे अपना श्रेष्ठ देने के लिए तैयार रहें। अर्थात् अपनी और सिर चढ़े खिलाड़ियों की खामियों को छिपाने का भरसक प्रयास हो रहा है। तो क्या हम ऐसे में खेल महाशक्ति नहीं बन पाएंगे?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |