संतोष ट्राफी के लिए नये अध्यक्ष की कल्याण-कारी सोच

Kalyan Chaubey AIFF president

फिलहाल अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी लेकिन भारतीय फुटबाल फेडरेशन (एआईएफएफ ) के नव निर्वाचित अध्यक्ष कल्याण चौबे देश में फुटबाल सुधार के लिए गंभीर नज़र आ रहे हैं । संतोष ट्राफी राष्ट्रीय फुटबाल चैम्पियनशिप को अहमियत देने की उनकी मंशा से लगता है कि फेडरेश फुटबाल को ग्रास रूट से सुधारने का इरादा रखती है ।

इसमें दो राय नहीं कि भारतीय फुटबाल को आज भी जीरो से शुरू करने की जरुरत है । इसलिए क्योंकि जो देश सैफ कप से आगे नहीं बढ़ पाया और जिसे एशियाई खेलों में भाग लिए सालों गुजर गए हैं उसकी फुटबाल हैसियत को आसानी से समझा जा सकता है । चूँकि कल्याण खुद स्तरीय खिलाडी रहे हैं और देश के नामी क्लबों ईस्ट बंगाल, मोहन बागान, जेसीटी आदि के लिए खेले हैं इसलिए वे बेहतर जानते हैं कि तमाम झूठ और पाखंड के बावजूद भी भारत फुटबाल में बड़ी ताकत क्यों नहीं बन पाया है । पूर्व अध्यक्षों ने बार बार विश्व कप में भाग लेने के दावे कर देश के फुटबाल प्रेमियों को न सिर्फ गुमराह किया उनका विश्वास भी तोड़ा।

नए अध्यक्ष ने संतोष ट्राफी के बारे में फिर से सोचने समझने का भरोसा देकर देश के पूर्व खिलाडियों कि भावना को बल दिया है, जिनमें से ज्यादातर संतोष ट्राफी की उपज रहे और यहीं से निकल कर उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया और खूब नाम कमाया । क्योंकि तब आईएसएल और आईलीग जैसे बेमतलब आयोजन अस्तित्व में नहीं थे इसलिए भरतीय फुटबाल और फुटबॉलर संतोष ट्राफी का पल्लू पकड़कर आगे बढे । बंगाल, पंजाब, गोवा, केरल, आंध्रा, महाराष्ट्र, रेलवे, सर्विसेज आदि ने संतोष ट्राफी जीत कर भारतीय फुटबाल को चैम्पियन खिलाडी दिए, जिनके जौहर 1951 और 1962 के एशियाई खेलों में देखने को मिले ।

संतोष ट्राफी राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में भाग लेने वाले दर्जनों खिलाडी चार ओलम्पिक खेलों में भाग लेने उतरे और भारत को फुटबाल जगत में पहचान दिलाने में सफल रहे । लेकिन पेशेवर फुटबाल को बढ़ावा देने के नाम पर फुटबाल ढाँचे में छेड़ छाड़ करना घातक साबित हुआ । दास मुंशी और पटेल की गलत नीतियों ने देश का फुटबाल ढांचा और चरित्र ही बदल डाला, जिसका सबसे बड़ा खामियाजा संतोष ट्राफी को भुगतना पड़ा । बेशक, कल्याण की सोच में दम है और यदि वे संतोष ट्राफी को अहमियत देना चाहते हैं तो यहीं से शुरुआत की जा सकती है । खिलाड़ियों को भरोसा दिलाया जाए कि जो राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में अच्छा करेंगे उन्हें देश की टीम में चुना जा सकता है ना कि आईएसएल और आई लीग जैसे तमाशों से । यदि ऐसा सम्भव हो पाया तो फुटबाल के हित में कल्याणकारी पहल होगी ।

संतोष ट्राफी के साथ साथ देश के बहुत से पुराने और पहचान खो चुके टूर्नामेंट्स को फिर से जगाने और जीवित करने की जरुरत है । संगठन और मैदानों की कमी के चलते कई नामी टूर्नामेंट या तो बमुश्किल चल रहे हैं या बंद हो गए हैं ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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