जनसँख्या बढ़ाई तो क्या पदक भी बढ़ेंगे ?

population increased but what about medals

इसमें दो राय नहीं कि चीन तकनीकी रूप से भारत के मुकाबले बहुत ताकतवर देश है और अन्य क्षेत्रों में भी उसकी ताकत और दमखम को कमतर नहीं आँका जा सकता| लेकिन एक क्षेत्र में भारत ने उसे पटखनी दे दी है | हाल के एक सर्वे के अनुसार हमने उसे आबादी की रफ़्तार बढ़ाने के मामले में पीछे छोड़ दिया है | चीन की 142.57 करोड़ की आबादी के मुकाबले भारत ने 142.86 करोड़ का आंकड़ा छू लिया है | अर्थात अब हम उससे 29 लाख की लीड ले चुके हैं|

कल तक भारतीय खेल खिलाडियों का प्रदर्शन चीन की नंबर एक जनसँख्या के कारण लुका छिपा था लेकिन अब खेल समीक्षकों लेखकों , पत्रकारोंऔर खेल विशेषज्ञों के सामने एक कडुवा सच आ खड़ा हुआ है । भले ही सबसे ज्यादा युवा भारत में हैं फिरभी भारत को खेलजगत में सबसे फिसड्डी देश के रूप में जाना पहचाना जाता है । यह सच्चाई दुखद जरूर है लेकिन बढ़ती जनसँख्या के कारण देश के खिलाडियों के सामने साधन सुविधाओं की कमी स्वाभाविक है ।

यह सही है कि हमने चीन को आबादी के मामले में पीछे छोड़ दिया है लेकिन ज्यादा युवा होने के बावजूद भी भारत और चीन की खेल उपलब्धियों की चर्चा सूरज को दिया दिखाने जैसा है । एशियाड में भारत के कहीं बाद में उतरने वाले चीन के पास एशियाई पदकों की भरमार है तो ओलम्पिक में हम मात्र दो व्यक्तिगत स्वर्ण पदक ही जीत पाए है । निशानेबाज अभिनव बिंद्रा और जेवलिन थ्रोवर नीरज चोपड़ा के अलावा अन्य कोई भारतीय यह करिश्मा नहीं कर पाया है । हॉकी में जरूर हमने आठ स्वर्ण जीते लेकिन यह कहानी वर्षों पुरानी है ।

ओलम्पिक में हमारी भागीदारी महज खानापूरी तक सीमित रही तो चीन पहले दिन के पहले घंटे से ही ओलम्पिक पदकों का खाता खोल कर अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों को ललकारने लगता है । उसके पास हर खेल के चैम्पियनों की भरमार है । जनसँख्या वृद्धि में हमने चीन को पीछे छोड़ दिया है लेकिन इसी तादात में हमने बेरोजगारों की लम्बी कतार बना डाली है । आम युवा और युवा खिलाडियों के लिए रोजगार के अवसर लगातार घट रहे हैं । विभिन्न सरकारी और गैरसरकारी दफ्तरों और कंपनियों में खिलाडियों के लिए कोई जगह नहीं बची । अफ़सोस की बात यह है कि एक तरफ तो भारत महान आबादी बढ़ाने में नंबर एक पोजीशन पर अकड़ता है तो दूसरी तरफ खेलों की नाकामी पर लाख बहाने बनाता है।

भारतीय खेल आकाओं , सरकारों , खेलों के नीतिकारों को जान लेना चाहिए कि कल तक हमारी नाकामी की कहानी चीन के नंबर एक जनसँख्या वाले देश होने के कारण लुकी छिपी थी लेकिन अब चीन दूसरे नंबर पर सरक गया है । ज़ाहिर है हमारे खेलों के मुखियाओं और खिलाडियों पर भी दबाव बढ़ेगा ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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