दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश ओलम्पिक खेलों की मेजबानी का दम भर रहा है, वर्ल्ड कप फुटबाल में उतरना चाहता है औऱ एशिया में बड़ी खेल ताकत बनना चाहता हैl लेकिन बहुत कुछ कर गुजरने की हेंकड़ी हाँकने वालों क़ो यह भी भान नहीं है कि हम आबादी के हिसाब से महां फिसड्डी खेल राष्ट्र हैँ l सच तो यह है कि हम किसी भी खेल में सुपर पावर नहीं हैँ औऱ निकट भविष्य में भी ऐसा कुछ नज़र नहीं आता जिसके दम पर खेलों में कामयाबी की गारंटी दी जा सकेl
जानकारों औऱ एक्सपर्टस की राय में भारतीय खेलों के पिछड़ेपन का बड़ा कारण सिर्फ सरकारी उदासीनता, भ्र्ष्टाचार, व्यविचार, चयन में धांधली औऱ अन्य उम्र कि धोखाधड़ी नहीं है l एक बड़े वर्ग के अनुसार समस्या कि जड़ में खेल संघो की दादागिरी, भ्र्ष्टाचार औऱ लूट हैl हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने खेल संघो के व्यवहार, उनके आचरण औऱ दादागिरी पर गंभीर चिंता जतलाई है l मुक्केबाजी संघ विवाद पर कोर्ट ने खेल संघो के आचरण क़ो देश के खेलों के लिए घातक बताया है l
हालांकि अनेक अवसरों पर इस प्रकार की चिंता जतलाई जाती रही है लेकिन खेल संघ सुधरने की बजाय औऱ ज्यादा बिगड़ रहे हैँ l उन्हें किसी का डर नहीं है l कारण ज्यादातर खेल संघो के शीर्ष पदाधिकारियों क़ो नेता, सांसदों, ब्यूरोक्रेट्स, औऱ अन्य असरदार लोगों का समर्थन औऱ आशीर्वाद प्राप्त होता है l ना सिर्फ मुक्केबाजी में बल्कि कुश्ती, हॉकी, बैडमिंटन, टेनिस, एथलेटिक, वॉलीबॉल, जिम्नास्टिक, तैराकी, जूड़ो, कबड्डी कराटे, वुशू औऱ तमाम खेल गन्दी राजनीति के शिकार हैँ l ज्यादातर का शासन – प्रशासन मौका परस्त, गुंडे औऱ भ्रष्ट लोगों के हाथों का खिलौना बना हुआ है l हैरानी वाली बात है कि भारतीय ओलम्पिक समिति भी बुरी नज़र औऱ नीयत से नहीं बच पाई है l देश के जाने माने खिलाड़ियों, पूर्व चैंपियनों, ओलम्पियनों औऱ अभिभावकों का मानना है कि देश के खेलों क़ो अवसरवादी नेताओं से बचाने की जरुरत है l खासकर, खेलों क़ो राजनीति चमकाने का हथियार बनाने वालों से बचाना होगाl खेल नीति में ऐसा कुछ प्रावधान जरुरी है जिसके चलते भारतीय खेल नेताओं की बुरी नीयत औऱ नज़र से बचे रहें l क्या ऐसा हो पाएगा?
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Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |