“शारीरिक शिक्षा और खेल जब एक साथ एक दूसरे के पूरक के रूप में आगे बढ़ेंगे तो तब जाकर भारत खेल महाशक्ति बनेगा और खिलाडियों का समुचित शारीरिक, मानसिक और चारित्रिक विकास हो पाएगा”, फिजिकल एजुकेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पेफी) की दो दिवसीय संगोष्ठी में भाग लेने वाले देश भर के शारीरिक शिक्षकों, खेल एक्सपर्ट्स, खेल वैज्ञानिकों, कोचों और खिलाडियों ने एक राय से माना कि तमाम प्रयासों के बावजूद भी यदि भारतीय खेल बेहतर परिणाम नहीं दे पा रहे हैं तो बड़ा कारण यह है कि गलत ट्रैक पकड़ कर भारतीय खेल आकाओं ने शारीरिक शिक्षा को खेल से अलग कर दिया है, जबकि दोनों का एक साथ आगे बढ़ना जरुरी है। पेफी के राष्ट्रीय सचिव पियूष जैन ने बाकायदा खेल एवम युवा मामलों की सचिव सुजाता चतुर्वेदी से निवेदन किया कि शारीरिक शिक्षा को खेल नीति का हिस्सा बनाया जाए। इस अवसर पर आयोजित ग्रुप डिस्कशन में अन्य खेल हस्तियों ने भी अपनी राय व्यक्त की।
जाने माने ओलम्पियन और देश के लिए लन्दन ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाले पहलवान योगेश्वर दत्त मानते हैं कि खेल और शिक्षा का एक साथ चलना जरुरी है। योगेश्वर शिक्षक परिवार से हैं लेकिन उनके माता पिता ने उन्हें कभी भी खेलने से नहीं रोका ।यही कारण है कि उन्हें खेलोगे कूदोगे होंगे खराब वाली कहावत कभी भी पसंद नहीं थी। योगेश्वर ने सम्मेलन में भाग लेने आए शिक्षकों और खेल हस्तियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि वे कुछ ऐसा करें ताकि शारीरिक शिक्षा और खेल एक साथ आगे बढ़ें। योगी ने माना कि जब तक देश का शारीरिक शिक्षक साधन संपन्न और संतुष्ट नहीं होगा तब तक हम स्वस्थ और मज़बूत दिल दिमाग वाले युवा तैयार नहीं कर सकते।
ओलम्पिक, एशियाड, वर्ल्ड चैम्पियनशिप और कॉमनवेल्थ खेलों में देश के लिए पदक जीतने वाले और अपने भार वर्ग के वर्ल्ड नंबर एक पहलवान योगेश्वर दत्त के सर पर हमेशा द्रोणाचार्य राजसिंह का हाथ रहा। दो दशक से भी अधिक समय तक चीफ कुश्ती कोच रहे राज सिंह मानते हैं कि खेल और शारीरिक शिक्षा के बीच तालमेल जरुरी है। वह खुद शारीरिक शिक्षक से भारत के श्रेष्ठ कुश्ती कोच बने लेकिन उन्होंने हमेशा खेल और पढाई लिखाई को एक साथ आगे बढ़ाने पर जोर दिया। योगेश्वर की तरह ही उन्होंने भी देश के शारीरिक शिक्षकों को अधिकाधिक प्रोत्साहन देने कि मांग की।
देश में शारीरिक शिक्षा और खेल के भविष्य के रोड मैप के बारे विचार व्यक्त करते हुए टेबल टेनिस के द्रोणाचार्य तपन पाणिग्रही, मलखंभ द्रोणाचार्य योगेश मालवीय, जूडो के अर्जुन अवार्डी यशपाल सोलंकी, दिल्ली साकर एसोसिएशन के अध्यक्ष शाजी प्रभाकरन, एशियन मैराथन चैम्पियन सुनीता गोदारा और जानी मानी तैराक और अनेकों तैराकी कीर्तिमान स्थापित करने वाली मिनाक्षी पाहूजा ने खेल के साथ साथ शारीरिक शिक्षा के महत्व को स्वीकार किया।
योगेश मालवीय ने अपना दुखड़ा रोते हुए कहा कि द्रोणाचार्य अवार्ड पाने के बाद भी वह बारह हज़ार महीने के वेतन पर काम करने के लिए विवश हैं तो सुनीता गोदारा ने मैराथन में आए बदलाव को खेल और शारीरिक शिक्षा के तालमेल का सुखद परिणाम बताया। यशपाल सोलंकी के अनुसार देश के अधिकांश जूडो खिलाडी शारीरिक शिक्षकों की मेहनत से आगे आ रहे हैं। शाजी प्रभाकरन मानते हैं की अच्छा फुटबॉलर वही बन सकता है जिसने शारीरिक शिक्षा का पाठ बखूबी पढ़ा हो। तरणताल में तहलका मचाने वाली, विशाल समुद्रों को पार करने वाली और अनेक सम्मान पाने वाली लेडी श्री राम कालेज की एसोसिएट प्रोफेसर मिनाक्षी पाहूजा को अच्छी शिक्षा और खेल के गुण विरासत में मिले। पिता श्री पाहूजा से मिली शिक्षा दीक्षा को उन्होंने गंभीरता से अपनाया। यही कारण है कि वह आज टीम पेफी की अगली कतार में खड़ी हैं। उनकी राय में शारीरिक शिक्षा को मान्यता मिले और देश की शिक्षानीति में इसका उल्लेख किया जाए।
पेफी के राष्ट्रीय सचिव और आयोजन समिति के प्रमुख डाक्टर पियूष जैन ने समापन समारोह की मुख्य अतिथि खेल सचिव सुजाता चतुर्वेदी से आग्रह किया की शारीरिक शिक्षा को मान्यता देने का वक्त आ गया है। श्री जैन के अनुसार यह तब ही सम्भव हो सकता है जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शारीरिक शिक्षा को सम्मानजनक स्थान दिया जाए।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |