बेदम हुई गलत फहमी की शिकार हॉकी

Over confident hockey on wrong track

चार दशक बाद ओलंम्पिक पदक के दर्शन करने के बाद भारतीय हॉकी, उसके आका, कर्ण धार और हाकी इंडिया जैसे पगला गए हैं। ‘ध्यान चंद का जमाना लौट आया है, भारत में बलबीर सीनियर जैसे चैंपियन फिर से पैदा होने लगे हैं”, जैसे नारे लगाए जा रहे हैं। लेकिन सिर मुंडाते ही ओले पड़े। पहले फ्रांस के जूनियरों ने हैसियत का आईना दिखाया और अब सीनियर टीम को जापान ने खेलना सिखा दिया।

भले ही भारतीय हॉकी के जी हुजुर कहें कि हमने पाकिस्तान को दो बार हराया है। लेकिन पाकिस्तान शीर्ष हॉकी राष्ट्रों की बिरादरी से कब का बाहर हो चुका है। उसे दो बार ओलंम्पिक में जगह नहीं मिल पाई। हालत यह है कि एक समय का विश्व विजेता एशिया की चौथे नम्बर की टीम बन कर रह गया है।

लेकिन भारतीय हॉकी को भी इतराने की जरूरत नहीं है। पिछले कई सालों से देशवासियों के खून पसीने की कमाई इस टीम पर खर्च की जा रही है। खिलाड़ियों को सोने के पालने में झुलाने वाली हॉकी इंडिया हर खिलाड़ी की तीमारदारी में लगी है। इसलिए कि हमारी टीम के जूनियर और सीनियर
देश का नाम खराब करें? यही तो फिहाल चल रहा है।

अपनी मेजबानी में देश को शर्मसार करने वाले खिलाड़ियों ,कोचों और टीम प्रबंधन को जितना भी कोसा जाए कम होगा। इस प्रदर्शन से साफ हो गया है कि ओलंम्पिक में जीते पदक को ज्यादा गम्भीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। नाराज हॉकी प्रेमी हॉकी इंडिया और उसके अधिकारियों को कोस रहे हैं। उनकी सबसे बड़ी नाराजगी यह है कि खिलाड़ियों को पिछले कई सालों से पर्दे में रखा जा रहा है। कैम्प और विदेश दौरों में व्यस्त रहते हैं और हॉकी प्रेमियों को अपने खिलाड़ियों को साक्षात खेलते देखने के मौके नसीब नहीं हो पाते।

पूर्व खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों के अनुसार उड़ीसा को हॉकी हब बनाना ठीक है लेकिन बाकी देश में हॉकी का प्रचार प्रसार कैसे हो पाएगा? भलेही उड़ीसा ने हॉकी को दस साल के लिए गोद लिया है लेकिन हॉकी पूरे देश का खेल है। उड़ीसा की बपौती नहीं है। इन खिलाड़ियों को अपने प्रदेश,विभाग और मान्यता प्राप्त टूर्नामेंट में खेलने से रोका गया तो देशवासी हॉकी का नाम लेना ही छोड़ देंगे।

बेहतर होगा हॉकी इंडिया अपनी टीम और खिलाड़ियों की असलियत को पहचाने, उन्हें ज्यादा सिर न चढ़ाए और ज्यादा भाव देना छोड़ दे। सच तो यह है इन खिलाड़ियों में फिलहाल दम नजर नहीं आता। विश्वास नहीं तो अगले ओलंम्पिक तक सब्र रखें।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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