राजेंद्र सजवान
भारतीय हॉकी की हालत को जानते हुए भी हमारे कुछ पूर्व ओलम्पियन और विश्व चैम्पियन खिलाड़ी हमेशा की तरह आशावान हैं और उन्हें उम्मीद है कि पेरिस ओलम्पिक गेम्स में भारतीय पुरुष टीम झंडे गाड़ कर लौटेगी। दूसरी तरफ कुछ हॉकी जानकार और पूर्व चैम्पियन ऐसे भी हैं, जिन्हें नहीं लगता है कि भारत आसानी से अंतिम चार में पहुंच पाएगा। उनका मानना है कि जो लोग टोक्यो ओलम्पिक में जीते कांस्य पदक पर इतरा रहे हैं उन्हें जान लेना चाहिए कि टोक्यो में पुरुष और महिला टीमों ने यादगार प्रदर्शन किया, क्योंकि वो महामारी का दौर था और कुछ देश अपना श्रेष्ठ नहीं दे पाए थे। ऐसा एक्सपर्ट कहते हैं।
पिछले ओलम्पिक में पुरुष टीम ने 41 साल बाद ओलम्पिक पदक के दर्शन किए तो महिलाएं श्रेष्ठ प्रदर्शन के साथ चौथे स्थान पर रही थीं। वही महिला टीम पेरिस का टिकट अर्जित नहीं कर पाई। एशियाई खेलों में निराशाजनक प्रदर्शन किया तो ओलम्पिक क्वालीफायर में जापान और अमेरिका जैसी टीमों से पिट कर दौड़ से बाहर हो गई। अर्थात् यह साबित हो गया कि टोक्यो ओलम्पिक में हालात के चलते चौथे स्थान की हकदार बनी थी महिलाएं।
पेरिस ओलम्पिक के लिए चुनी गई टीम में मात्र एक गोलकीपर का चयन किया गया है और पांच खिलाड़ी नए बताए जा रहे है। हॉकी इंडिया के कोच, खिलाड़ी और कुछ पूर्व ओलम्पियन टीम को लेकर आशावान हैं। जैसा कि हर ओलम्पिक से पहले बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, इस बार भी वही सब हो रहा है। हालांकि टीम की रैंकिंग में गिरावट आई है लेकिन पदक का दावा जस का तस बरकरार है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कप्तान हरमनप्रीत सिंह पेनल्टी कॉर्नर पर गोल जमाने में उस्ताद हैं और गोल बचाने की कलाकारी में श्रीजेश बड़ा और अनुभवी नाम है। लेकिन हॉकी सिर्फ एक-दो खिलाड़ियों का खेल नहीं है। पूरी टीम बेहतर खेलेगी तो पदक मिल सकता है।
कुछ हॉकी जानकारों की मानें तो भारतीय टीम हर बार अत्याधिक आत्मविश्वास और हुंकार भरने की बीमारी से ग्रस्त देखी गई हैं, जबकि दूसरे देश चुपचाप आते हैं और अपना काम अंजाम देकर निकल जाते हैं। ओलम्पिक शुरू होने तक ऑस्ट्रेलिया, हॉलैंड, जर्मनी, बेल्जियम जैसे बड़े नाम चुप्पी साधे रहते हैं लेकिन भारत के कर्णधार और देश का मीडिया अपनी टीम को मैदान में उतरने से पहले एक्सपोज कर देता है, जो कि सालों से नुकसानदेह साबित हुआ है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |