भारतीय खेलों पर सरसरी नजर डालें तो आजादी के बाद से प्राय पुरुष खिलाड़ी ही अधिकांश खेलों में छुट पुट सफलताएं अर्जित करते आए हैं। खासकर, हॉकी , फुटबाल, एथलेटिक, कुश्ती , मुक्केबाजी और कुछ अन्य खेलों में पुरुष खिलाड़ियों की सफलता का ग्राफ महिलाओं की तुलना में अपेक्षाकृत खासा ऊंचा रहा है। पुरुष हॉकी टीम का ओलंपिक चैंपियन बनना सबसे बड़ी ऐतिहासिक घटना थी। सालों साल भारत ने इस खेल में अपना प्रभुत्व कायम रखा। एथलीट मिल्खा सिंह, पहलवान चंदगीराम, सतपाल, करतार , मुक्केबाज हवा सिंह और फुटबाल में दर्जनों खिलाड़ी भी चर्चित हुए।
जहां तक महिला खिलाड़ियों की बात है तो पीटी ऊषा द्वारा ओलंपिक में चौथा स्थान अर्जित करना पहली बड़ी घटना रही । ऊषा के दौर के बाद अन्य खेलों में भी महिला खिलाड़ियों ने बेहतर करना शुरू किया। एशियाड और कामनवेल्थ खेलों में महिला हॉकी की जीतों को जमकर सराहा गया लेकिन सही मायने में ऊषा के बाद महिला खिलाड़ियों में कर्णम मल्लेश्वरी सबसे बड़ा नाम बनकर उभरी। मल्लेश्वरी पहली ओलंपिक पदक विजेता महिला बनीं। वेटलिफ्टिंग के बाद मुक्केबाजी, बैडमिंटन, कुश्ती में भी भारतीय महिलाओं ने कामयाबी की राह पर चलना शुरू किया लेकिन आज तक एक भी भारतीय महिला खिलाड़ी या टीम ओलंपिक गोल्ड नहीं जीत पाई है।
जहां तक पुरुषों की बात है तो निशानेबाज अभिनव बिंद्रा और उनके बाद भाला फेंक के दिग्गज नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत कर देश का गौरव बढ़ाया है। लेकिन कोई महिला खिलाड़ी कब इस उपलब्धि को पाएगी ? महिला खिलाड़ियों ने हालांकि ओलंपिक पदक जीतने का सिलसिला बनाए रखा है परंतु सिंधु और चानू के सिल्वर , मैरीकाम, सायना और साक्षी के कांस्य पदक फिलहाल महिलाओं के खाते में दर्ज हैं। दीपा कर्मारकर, हिमा दास और और दूती चंद ने कुछ एक अवसरों पर उम्मीद की किरण दिखाई लेकिन इन सभी के प्रदर्शन में टिकाऊपन की भारी कमी नजर आई। नशीले पदार्थों के सेवन और नियमों के साथ खिलवाड़ के चलते ज्यादातर महिला खिलाड़ी सजा की पात्र बनती आ रही है। यूं तो पुरुष खिलाड़ी दूध के धुले नहीं हैं लेकिन गलत तरीकों से प्रदर्शन में सुधार का रास्ता पकड़ कर बहुत सी लड़कियां बर्बाद हो रही हैं। पिछले कुछ सालों में भारतीय पुरुष खिलाड़ियों की तुलना में महिला खिलाड़ी विवादों में कुछ ज्यादा ही नाम कमा रही हैं।
जहां तक ओलंपिक पदक की उम्मीद की बात है तो ओलंपिक रजत जीतने वाली पीवी सिंधु और मीरा बाई चानू दौड़ में अब भी आगे चल रही हैं । कोई निशानेबाज, मुक्केबाज या पहलवान भी महिला खिलाड़ियों के स्वर्णिम सफर की गवाह बन सकती है। विडंबना यह है कि भारतीय महिलाएं लगभग हर क्षेत्र में पुरुषों से मुकाबला कर रही हैं लेकिन ओलंपिक गोल्ड आज तक कोई भी महिला नहीं जीत पाई है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |