पिछले कुछ सालों में हुए भारतीय फुटबाल के पतन की कहानी किसी से छिपी नहीं है । आलम यह है कि अपनी टीम को एशियाई खेलों में भाग लेने के काबिल भी नहीं समझा जाता । इस कमी को पूरा करने के लिए भारतीय फुटबाल सैफ या सार्क फुटबाल चैम्पियनशिप नाम के टॉनिक का सेवन करती है और देश के फुटबाल कर्णधार शेर की तरह दहाड़ने लगते हैं । उनके सुर में सुर मिलाने के लिए तथाकथित फुटबाल एक्सपर्ट , कमेंटेटर और पत्रकार नाम के प्राणी अनेकों अलंकारों का प्रयोग कर अपनी टीम को विश्व विजेता की तरह पेश करते हैं और उन्हें ‘ ब्ल्यू टाइगर’ और अब ‘ब्ल्यू टाइग्रेस’ कह कर सम्बोधित करते हैं । लेकिन क्या ये सम्बोधन भारतीय फुटबाल पर फिट बैठते हैं ?
कुछ पूर्व खिलाडियों और फुटबाल जानकारों को इन सम्बोधनों से चाटुकारिता और जी हुजूरी की बू आती है । एक पूर्व खिलाडी के अनुसार भले ही टाइगर (बाघ) हमारी राष्ट्रीय पहचान है लेकिन फुटबाल खिलाडी को चीते (लेपर्ड) की तरह तेज तर्रार होना चाहिए, जो कि भारत में लुप्त हो गए हैं। यह प्रजाति देश में अच्छे फुटबाल खिलाडियों की तरह गायब हो गई थी और अब उनका आयात करना पड़ रहा है। फिलहाल हम विदेशों से टॉप फुटबॉलर का आयत नहीं कर सकते लेकिन अपनी फुटबाल का स्तर देख कर ही कोई राय बनाई जाए तो बेहतर रहेगा ।
सैफ महिला फुटबाल में भारतीय महिला फुटबाल टीम नेपाल से हार गई । उधर सैफ कप जीतने वाली पुरुष टीम को भी ग्रुप मैच में नेपाल के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। बाद में इसी टीम ने नेपाल को हराया और सैफ कप जीत लिया। हालाँकि वैसे तो इन खबरों को भारतीय खेल प्रेमी ज्यादा महत्व नहीं देते लेकिन जब एक छोटा सा देश जनसँख्या विस्फोट फ़ैलाने वाले देश को किसी भी खेल में हराता है तो आम भारतीय शर्मसार जरूर होता होगा ।
यह न भूलें कि सरकार और देश के छोटे बड़े उद्योगपति भारतीय खेलों पर लाखों करोड़ों खर्च कर रहे हैं । उस खेल पर बेसुमार खर्च कर रहे हैं जिसने देश का नाम सबसे ज्यादा खराब किया है । लेकिन जब फिसड्डी देशों और टीमों के हाथों हार की खबरें पढ़ने सुनने को मिलती हैं तो आम खेल प्रेमी का गुस्सा वाज़िब है । तब आम फुटबाल प्रेमी का आक्रोश पूरे उबाल पर होता है, जब हमारी टीम किसी पिछड़ी रैंकिंग वाले देश से हार जाती है और फुटबाल फेडरेशन के चाटुकार कहते हैं , ‘ नेपाल, अफगानिस्तान , बांग्लादेश ने ब्ल्यू टाइगर्स को पीटा’।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |