भारतीय हॉकी के लिए अशुभ लक्षण!

Not a good sign for Indian hockey

भारतीय हॉकी टीम को पता था कि कोरिया के विरुद्ध जीत के बाद ही उसका एशिया कप फाइनल प्रवेश तय हो पाएगा लेकिन कोरिया ने गत विजेता को बराबरी पर रोक कर उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। भाग लेने वाली टीमें यह भी जानती थीं की यह टूर्नामेंट अगले साल होने वाले विश्व कप का क्वालीफायर है लेकिन भारत क्योंकि पहले ही क्वालीफाई कर चुका है इसलिए हॉकी इंडिया ने अपनी युवा टीम को आजमाने का फैसला किया और एशिया कप में अपना रिकार्ड खराब कर दिया।

यह न भूलें की हॉकी इंडिया ने कॉमनवेल्थ खेलों में में भी दूसरे दर्जे की टीम उतारने का आह्वान किया तो आयोजकों ने जम कर फटकार लगाई। फिलहाल खिलाडियों की भागीदारी तय होनी बाकी है। खैर एशिया कप हाथ से निकल गया है और कॉमनवेल्थ में भी यदि इसी प्रकार प्रयोग किया गया तो विश्व कप और दो साल बाद होने वाले ओलम्पिक खेलों की तैयारी पर असर पड़ सकता है।

सवाल यह पैदा होता है की भारतीय हॉकी कब तक जूनियर सीनियर का रोना रोती रहेगी? एशिया कप में भाग लेने गए खिलाडी किसी मायने में कम उम्र नहीं हैं और उनके पास अनुभव की कोई कमी नहीं है। जिन खिलाडियों को सीनियर कहा जा रहा है पेरिस ओलम्पिक में उनका भाग लेना नुक्सानदेह हो सकता है। वैसे भी कोरिया , मलेशिया, और जापान से निपटने के लिए भारत के किसी एक प्रदेश की टीम काफी रहेगी। लेकिन जब हमारी टीम कोरिया, मलेशिया और पकिस्तान से ड्रा खेलती है और कभी कभार जापान से हार जाती है तो हॉकी प्रेमियों का दिल जरूर जलता होगा।

वैसे भी एशिया में सिर्फ भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जोकि यूरोपीय टीमों को टक्कर दे रहा है। पकिस्तान अपने अंतरकलह के चलते शीर्ष टीमों की बिरादरी से बाहर हो चूका है। जापान, कोरिया, मलेशिया भी बरसाती मेंडकों की तरह हैंऔर उनकी कोई हैसियत नहीं बची है। हालाँकि इन टीमों ने सुपर चार में जगह बना कर विश्व कप खेलने का सम्मान हासिल कर लिया है लेकिन भारतीय भागीदारी किसी भी मायने में सम्मानजनक नहीं कही जा सकती।

कुछ पूर्व ओलम्पियनों के अनुसार कुछ एक खिलाडियों को छोड़ एशिया कप खेलने वाली टीम अगले ओलम्पिक के लिए तैयार की जानी चाहिए। टोक्यो ओलम्पिक खेलने वाले ज्यादातर खिलाडियों के लिए मौके ज्यादा नहीं बचे हैं। उम्र उन पर हावी है। लेकिन जब भारत और पकिस्तान महाद्वीपीय आयोजनों में कांस्य पदक के लिए खेलते हैं या उन्हें खिताबी भिड़ंत से पहले ही बाहर का रास्ता देखना पड़ता है तो एशियाई हॉकी अपनी दुर्दशा पर जरूर रोती होगी। जो देश कभी विश्व हॉकी के सरताज थे उनको पिद्दी से देशों के सामने शर्मसार होना पड़ रहा हैं|

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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