“सडन डैथ” नहीं है , इसे तिल तिल कर मरना कहते हैं। न्यूज़ीलैंड के हाथों टाई ब्रेकर (सडन डैथ )में पराजय के बाद एक पूर्व ओलम्पियन की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार रही। पूर्व विश्व विजेता हॉकी टीम के एक अन्य खिलाडी के अनुसार भारतीय हॉकी पिछले चालीस सालों से धीरे धीरे मर रही है । ऐसा नहीं है कि खेल को पटरी पर लाने के लिए प्रयास नहीं किए गए या खिलाडियों की सुख सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा जा रहा । सच तो यह है कि आज के खिलाडियों को वह सब मिल रहा है जिसके लिए पूर्व चैम्पियन तरसते रहे थे । फिरभी नतीजा जीरो से ऊपर नहीं उठ पा रहा तो कहीं कोई गड़बड़ जरूर है।
‘ अभी नहीं तो कभी नहीं’ , अख़बारों और टीवी चैनलों पर यह नारा कई दिनों से लगाया जाता रहा है । चूँकि मेजबानी अपनी है और अपने मैदान और दर्शकों के सामने खिलाडियों का मनोबल सातवें आसमान पर होना स्वाभाविक है लेकिन ऐसा कुछ नज़र नहीं आया । न्यूजीलैंड जोकि 12वे रैंकिंग की टीम है और जिसे सबसे आसान शिकार माना जा रहा था उसने भारतीय हॉकी को डैथ बैड पर लिटा दिया । कुछ अंध भक्त इस शर्मनाक हार के बाद भी कह रहे हैं कि भारतीय खिलाडियों ने गज़ब का प्रदर्शन किया लेकिन भाग्य उनके साथ नहीं था। ऐसे हॉकी चाटुकारों को तो यही कहा जा सकता है कि अपने दिमाग का इलाज कराएं और भारतीय हॉकी के कर्णधारों के तलवे चाटना छोड़ दें ।
बेशक अभी नहीं तो कभी नहीं का नारा एकदम सटीक था , क्योंकि इस वर्ल्ड कप ने दिखा दिया है कि भारत हॉकी में बहुत पीछे छूट गया और आगे बढ़ने की उम्मीद भी जाती रही है । मेजबान टीम प्रबधन, कोचिंग स्टाफ और खिलाडियों को पता होगा कि उड़ीसा सरकार अपने खिलाडियों के लिए किस कदर समर्पित है । खिताब जीतने पर हर खिलाडी को एक एक करोड़ देने की घोषणा हो चुकी थी लेकिन प्रीक्वार्टर में ही भारत को हार का मुंह देखना पड़ा ।
कुछ हॉकी प्रेमी अपनी टीम की हार पर यह कह रहे हैं कि अच्छा हुआ कि और आगे नहीं बढ़ पाए वरना ऑस्ट्रेलिया और बेल्जियम के खिलाडी भगा भगा कर बुरा हाल कर डालते । खासकर, ऑस्ट्रेलिया भूत कई सालों से भारतीय खिलाडियों को डरा भगा रहा है । इस हार ने टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीम द्वारा जीते गए कांस्य पदक को भी धुंधला कर दिया है । कुछ आलोचक तो यहाँ तक कह रहे हैं कि कोरोना काल में तीर तुक्का चल गया था।
इसमें दो राय नहीं कि भारतीय हॉकी के लिए अपनी मेजबानी में बेहतर करने और फिर से हॉकी प्रेमियों के दिल दिमाग में स्थान बनाने का सुनहरी मौका था जिसे उन्होंने गंवा दिया है । अब आगे की राह भी मुश्किल होने जा रही है , क्योंकि ऑस्ट्रेलिया , बेल्जियम , हालैंड , जर्मनी , अर्जेंटीना जैसे देशों से पार पाना निरंतर मुश्किल होता जा रहा है ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |