चूँकि सानिया मिर्ज़ा पर उम्र और फिटनेस का दबाव बढ़ने लगा है इसलिए भारत की सर्वकालीन श्रेष्ठ महिला टेनिस खिलाडी ने रैकेट टांगने का फैसला कर लिया है। वैसे भी 35 साल की उम्र में टेनिस कोर्ट पर डटे रहना इसलिए मुश्किल है क्योंकि कई छोटी उम्र की लड़कियां अंतरराष्ट्रीय पटल पर धमाल मचा रही हैं। बेशक, सानिया का फैसला सराहनीय है। अब वह अपने घर परिवार और तीन साल के बच्चे को अधिकाधिक समय दे सकती हैं।लेकिन अपने पीछे वह एक सवाल छोड़े जा रही हैं कि उनके बाद कौन?
हाल ही में जब लिएंडर पेस ने तृणमूल कांग्रेस से नाता जोड़ा था तो 46 साल के योद्धा से भी यही सवाल पूछा गया था कि उनके बाद कौन भारतीय टेनिस का बोझ अपने कन्धों पर उठाएगा? इस सवाल का जवाब बार बार और लगातार पूछा जाता रहा है और हर पीढ़ी और खिलाडी बस यही कहते हुए आगे बढ़ जाते हैं कि भारतीय टेनिस का भविष्य उज्जवल है।
जहां तक पुरुष टेनिस कि बात है तो रामनाथन कृष्णन, विजय अमृतराज, रमेश कृष्णन और लिएंडर पेस ने एकल मुकाबलों में विश्व स्तरीय प्रदर्शन से भारतीय टेनिस को पहचान दी। अपने समकालीन श्रेष्ठ खिलाडियों को हराने में भी उन्हें कामयाबी मिली। राम नाथन कृष्णन और विजय अमृतराज ने चारों ग्रांड स्लैम मुकाबलों में गज़ब का प्रदर्शन किया लेकिन कोई ही खिलाडी फाइनल में नहीं पहुँच पाया। लिएंडर और महेश भूपति ने सर्वाधिक डबल्स और मिक्स्ड डबल्स जीत कर भारतीय टेनिस का कद बढ़ाया तो महिलाओं में सिर्फ सानिया ही ऐसा कर पाई। मार्टिना हिंगिस के साथ जोड़ी बनाकर विश्व रैकिंग के शिखर पर चढ़ना उसकी महानतम उपलब्धि रही।
सानिया ने देश के लिए खेलते हुए, एशियाड, कॉमनवेल्थ और एफ्रो एशियाई खेलों में भी पदक जीते। ओलम्पिक पदक जीतने वाले लिएंडर अकेले भारतीय खिलाडी हैं। अब सवाल फिर वहीं आ खड़ा होता है कि सानिया और लिएंडर के बाद कौन? कौन भारतीय टेनिस को आगे बढ़ाएगा? यह सवाल बार बार इसलिए आ खड़ा होता है क्योंकि भारतीय टेनिस में प्रबंधन और रखरखाव कि भारी कमी है। इसलिए क्योंकि देश में टेनिस का कारोबार करने वाली इकाई (एआईटीए) अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रही, ऐसा आम टेनिस खिलाडी, टेनिस प्रेमी और खेल प्रेमी का मानना है।
कुछ टेनिस जानकारों और पूर्व खिलाडियों के अनुसार जितने भी भारतीय खिलाडियों ने इस खेल में पहचान बनाई और देश का नाम रौशन किया उनके अपने दम पर और परिवार के समर्थन के चलते ऐसा सम्भव हो पाया। जहाँ तक एआईटीए की बात है तो इस मृतवत संस्था ने बस खिलाडियों से टकराने , उन्हें नीचा दिखाने जैसे काम किए। पिछले चालीस सालों से एआईटीए कृष्णन और अमृतराज परिवारों से लड़ती भिड़ती रही। लिएंडर , महेश और सानिया के साथ भी सम्बन्ध कभी मधुर नहीं रहे। सबसे शर्मनाक बात यह है कि यह संस्था आज तक टेनिस को आम भारतीय का खेल नहीं बना पाई है।
140 करोड़ कि आबादी वाले देश के पास कोई ग्रांड स्लैम विजेता और ओलम्पिक चैम्पियन नहीं है। डेविस कप कभी नहीं जीत पाए और लिएंडर और सानिया के जाने के बाद खिलाडियों का अकाल पड़ने वाला है, यहभी हर कोई जानता है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |