“जो आदमी खुद को न्यायालय से भी बड़ा समझता है और जिसने बारह साल तक अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन (एआईएफएफ) का शीर्ष पद नहीं छोड़ा, उसे यूँ ही पद त्याग के लिए कह देना कहाँ का न्याय है ? यह तो सरासर जंगल राज है,” खेल एवं युवा मामलों के मंत्रालय के कड़े कदम के बाद फुटबाल खिलाडियों और कोचों की प्रतिक्रिया कुछ इस तरह की रही है।
जो लोग भारतीय फुटबाल की बदहाली का रोना रोते हैं, तरह तरह के बहाने बना कर अपनी और फेडरेशन की काली करतूतों को छिपाते हैं उन्हें अब पता चल जाना चाहिए की क्यों और कैसे भारतीय फुटबाल बर्बाद हो रही है। क्या फुटबाल का रक्षक ही भक्षक नहीं हैं? एक पूर्व खिलाडी के अनुसार प्रफुल्ल पटेल को दिसंबर 2020 में पद छोड़ देना चाहिए था लेकिन श्रीमान जी अध्यक्ष पद छोड़ने की बजाय सर्वोच्च न्यायालय जा पहुंचे, जहाँ उनके भाग्य का फैसला होना बाकी है।
कानून और फुटबाल फेडरेशन के संविधान का मज़ाक उडाने वाले पटेल साहब आगे रहेंगे या जाएंगे, फिलहाल कुछ भी तय नहीं है लेकिन उन्होंने न सिर्फ भारतीय फुटबाल को बर्बाद किया अपितु खेल मंत्रालय और खेल कोड को भी ठेंगा दिखाने का दुस्साहस किया है, ऐसा देश के हजारों खिलाडी और फुटबाल प्रेमी मानते हैं। अपने पद, पहुँच और गन्दी राजनीति का इस्तेमाल कर उन्होंने भारतीय फुटबाल को फीफा रैंकिंग में 110 वें स्थान के आस पास पहुंचा दिया है।
फिलहाल वक्त आ गया है। पटेल की टीम को जाना पड़ेगा। लेकिन शायद वे शराफत से नहीं मानने वाले। चूँकि राजनीति के धुरंधर हैं, इसलिए फुटबाल की पूरी हवा निकालकर और कुछ और बदनामी ओढ़ कर ही मानेंगे। खेल मंत्रालय ने साफ़ कर दिय है की एआईएफएफ की मान्यता रद्द की जा सकती है। अर्थात पटेल एक और बड़ा तमगा गले में लटका कर ही मानेंगे। शर्मनाक बात यह है कि जिस खेल ने पटेल को पहचान दी उसे पूरी तरह गर्त में डुबो कर ही जाएंगे।
अफ़सोस की बात यह है कि जिस वक्त पूरी दुनिया पर सबसे लोकप्रिय खेल का जादू सर चढ़ कर बोल रहा है और तमाम देश विश्व कप फुटबाल की बाट जोह रहे हैं, भारत में उसका अपना फुटबाल चीफ तमाम नाकामियों के बावजूद कुर्सी बचाने पर लगा है। भारतीय फुटबाल प्रेमी जानते हैं कि पटेल ने अनेकों बार 2022 विश्व कप में भारतीय भागीदारी का दावा किया था लेकिन हमारे तथाकथित “ब्ल्यू टाइगर्स ” बार बार मेमने साबित हुए। आज भारतीय फुटबाल पूरी दुनिया में उपहास का पात्र बन गई है तो पटेल एन्ड कंपनी की करतूतों के कारण।
देश के जाने माने फुटबाल खिलाडी और खेल को दिलो जान से चाहने वाले राहुल मेहरा को सलाम कर रहे हैं, जिनके प्रयासों से एक खेल भक्षक की असलियत सामने आई है और अब शायद उसे पद छोड़ना ही पड़ेगा। लेकिन दास मुंशी के नाकाम कार्यकाल के बाद पटेल ने 12 साल और बर्बाद कर दिए। देश के फुटबाल खिलाडी चाहते हैं कि खेलों को लूटने वाले अधिकारीयों को कड़ी सजा मिले ताकि फिर कोई अवसरवादी और स्वार्थी खेल से खिलवाड़ करने का साहस न कर सके।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |