भारतीय फुटबाल भले ही कोई प्रगति नहीं कर पाई लेकिन पिछले कुछ सालों में एक क्षेत्र में खासी प्रगति नजर आ रही है। यह क्षेत्र है … सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग। अफसोस की बात यह है कि यह घिनौना खेल ग्रास रूट से शुरू होकर उच्च स्तर पर खेला जा रहा है और इस खेल में छोटे से लेकर शीर्ष तक के खिलाड़ी शामिल बताए जा रहे हैं।
हालांकि फुटबाल में मिलीभगत नई बात नहीं है लेकिन शुरुआती वर्षों में इस अपराध में चंद टीमें, उनके सपोर्टर , खिलाड़ी और कोच शामिल थे । कुछ पूर्व खिलाड़ियों क्लब अधिकारियों और कोचों के अनुसार कोलकाता और गोवा की क्लब फुटबाल में यह सब आम था लेकिन आज कोई भी प्रदेश सट्टेबाजों और मिलीभगत करने वालों से नहीं बचा है। जहां जहां फुटबाल पहुंची समझो गड़बड़ झाला भी पहुंच जाता है।
कुछ खिलाड़ियों और क्लब अधिकारियों के अनुसार मैच के नतीजे की पृष्ठभूमि पहले ही तैयार कर ली जाती है। कुछ कमजोर कड़ियों को तलाश कर उन्हें उनका रोल समझाया जाता है और कभी कभार प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी भी इस खेल में शामिल कर लिए जाते है। हैरानी वाली बात यह है कि रेफरी और लाइनसमैन भी भूमिका निभाते हैं।
यह खेल ऐसा है जिसे आसानी से नहीं समझा जा सकता। स्क्रिप्ट ऐसी लिखी जाती है की शक की जरा भी गुंजाइश न बचे। सूत्रों की माने तो इंग्लिश प्रीमियर लीग, आई एस एल, आई लीग, राज्य इकाइयों की वार्षिक लीग और तमाम बड़े छोटे आयोजनों में सट्टेबाजी आम है और अंतरराष्ट्रीय फुटबाल भी इस बीमारी से अछूती नहीं है।
कुछ साल पहले अंतरराष्ट्रीय और भारतीय क्रिकेट में यह गोरख धंधा जोरों पर था। खिलाड़ी सटोरियों और फिक्सरों के हाथों खेल रहे थे। मामला कोर्ट कचहरी तक पहुंचा और कोर्ट ने दोषियों को इसलिए छोड़ दिया क्योंकि भारतीय क्रिकेट के कई बड़े नाम शामिल थे। बेशक, देश और खेल की बदनामी का सवाल था। लेकिन यह सिलसिला बदस्तूर जारी है और यह मान लिया गया है कि जब तक खेल रहेगा सट्टाबाजार फलता फूलता रहेगा।
कुछ देशों में सट्टेबाजी को शर्तों के साथ वैध कर दिया गया है लेकिन भारत में सट्टा, जुआ, लाटरी पर पूर्ण और आशिक प्रतिबंध है। फिर भी यह बीमारी भारतीय खेलों में अंदर तक घुसपैठ कर चुकी है। यदि शीघ्र कोई हल नहीं निकाला गया तो रेंगते और गिरते पड़ते चल रहे भारतीय खेल धड़ाम से गिर सकते हैं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |