फुटबाल जगत में जब भी कोई बड़ी छोटी घटना घटित होती है तो आम भारतीय फुटबाल प्रेमी उस घटना को अपनी फुटबाल के साथ जोड़ कर जरूर देखता है। मसलन पिछले विश्व कप में जब क्रोशिया फाइनल में पहुंचा तो हमारी फुटबाल को ताना सुनना पड़ा था। अब जबकि नार्थ मेसेडोनिया ने इटली को हराया है तो एक बार फिर से भारतीय फुटबाल, भारतीय फुटबाल संघ और उसके अध्यक्ष प्रफुल पटेल की टांग खींची जा रही है।
हार पूर्व विश्व चैम्पियन इटली की हुई है और भारत के फुटबाल प्रेमी अपनी फेडरेशन को बुरा भला कह रहे हैं। कोई कह रहा है कि फेडरेशन को खेल मंत्रालय भंग क्यों नहीं कर देता, कोई कह रहा है कि पटेल इस्तीफा क्यों नहीं देते? ऐसा इसलिए क्योंकि क्रोशिया कि आबादी देश के किसी भी जिले से बहुत कम है और मेसेडोनिया कि कुल जनसँख्या तो बीस लाख भी नहीं है।
भारतीय फुटबाल प्रेमी अपनी फुटबाल और उसके खैर ख़्वाहों को इसलिए कोस रहे हैं क्योंकि उन्हें मेसेडोनिया की जीत हैसियत का आइना दिखा रही है। उन्हें लग रहा है कि भारतीय फुटबाल में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा। खासकर फुटबाल को संचालित करने वाली फेडरेशन में लुटेरे बैठे हैं, जोकि शायद गलत भी नहीं है। वरना क्या कारण है कि फेडरेशन का अध्यक्ष नेता होने के साथ साथ अभिनेता भी बना हुआ है। दास मुंशी की तरह पटेल साहब भी पद नहीं छोड़ना चाहते, भले ही फुटबाल का दम निकल जाए।
कतर विश्व कप 2022 के लिए भारतीय फुटबाल टीम क्वालीफाई नहीं कर पाई। हालाँकि फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष दास मुंशी ने 2002 में भारत की भागीदारी का सपना दिखाया था। उनके बाद पटेल ने क़तर में भारत के भाग लेने की संभावना व्यक्त की थी। लेकिन फुटबाल जानकारों को पता है कि भारत शायद अगले सौ साल में भी यह गौरव हासिल नहीं कर सकता। जो देश फीफा रैंकिंग में सौवें पायदान पर भी नहीं है और जिसकी एशियाइ फुटबाल में कोई हैसियत नहीं है, वह भला विश्व कप कैसे खेल सकता है!
एशिया महाद्वीप की अगुवाई मेजबान क़तर कर रहा है। चार अन्य देश ईरान, दक्षिण कोरिया, जापान और सऊदी अरब हैं। लगभग दर्जन भर अन्य एशियाई देश भारत से कहीं बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। जिस देश में सैकड़ों मेसेडोनिया बन सकते हैं उसकी फुटबाल की बदहाली पर कोई भी गंभीर नहीं है। सरकारों ने कभी नहीं पूछा कि दुनिया के सबसे लोकपिय खेल में भारत इतना पिछड़ा क्यों है? क्यों देश वासियों के खून पसीने की कमाई फिसड्डी फुटबाल पर खर्च की जा रही है? क्यों प्रफुल पटेल और उनके मुंशी कुशाल दास को अपदस्त नहीं किया जाता?
यदि कुछ एक देशों को छोड़ दिया जाए तो विश्व कप में भाग लेने वाले तमाम देशों की कुल आबादी का योग गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी और अपराध में जकड़ी भारतीय आबादी से भी कम बैठता है। शर्मनाक बात यह है कि एक करोड़ चालीस लाख की आबादी में भारत महान के पास ग्यारह सधे हुए फुटबॉलर भीनहीं हैं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |