लिम्बाराम को क्यों भुला दिया?

Limba Ram

सालों बीत चुके हैं , करोड़ों खर्च हुए हैं लेकिन एक भी भारतीय तीरंदाज ओलंम्पिक पदक पर निशाना नहीं साध पाया है। भले ही अपने बहुत से तीरंदाज विश्व चैंपियन बन रहे हैं, लेकिन एक भी ऐसा नहीं जिसका कद लिम्बा से ऊंचा हो। वह लिम्बा जोकि ओलंम्पिक पदक के करीब पहुंचने वाला पहला भारतीय तीरंदाज था। लेकिन आज व्हील चेयर पर है।

लिम्बा भारतीय तीरंदाजी की प्रेरणा है और भारतीय तीरंदाजी में उसका स्थान वैसा ही है जैसा महाभारत में अर्जुन का रहा है। लेकिन बेचारा लिम्बा एकलव्य बन कर रहा गया है। वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त है और फिलहाल दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में रह रहा है।

बेशक, उसे गरीब परिवार में जन्म लेने और एक महां गरीब खेल को अपनाने की सजा मिल रही है। एक खिलाड़ी के बतौर उसने विश्व रिकार्ड बनाए, देश के लिए पदक जीते लेकिन कम पढ़े लिखे होने के कारण अपना दर्द सरकारों तक बयान नहीं कर पाया। वह तीरंदाजी में तब अवतरित हुआ जब तीरंदाजों को हेय दृष्टि से देखा जाता था। लेकिन अपने अचूक निशानों से उसने जब एशियायी और विश्व रिकार्ड बनाए तो उसके खेल को सम्मान दिया जाने लगा। तीन ओलंम्पिक खेलने वाले लिम्बा मात्र एक अंक की दूरी से बार्सिलोना ओलंम्पिक 1992 में पदक से चूक गए थे। अफसोस इस बात का है कि देश के श्रेष्ठ तीरंदाज को उसके भोलेपन और मासूमियत के कारण वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसका हकदार था।

आज लिम्बा बेहद दयनीय हालत में पत्नी के साथ जैसे तैसे दिन काट रहा है। अक्सर नेहरू स्टेडिम में व्हील चेयर पर नजर आता है। हालांकि
सरकार हर संभव मदद कर रही है लेकिन उसे अपनी छोटी छोटी जरूरतों के लिए सरकार और अन्य का मुंह ताकना पड़ रहा है। अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री से सम्मानित लिम्बा न्यूरो डिजनरेटिव कंडीशन की गंभीर अवस्था से जूझ रहा है और उसके स्वास्थ्य में लगातार गिरावटआ रही है।

अन्तरराष्ट्रीय तीरंदाजी से सन्यास के बाद लिम्बा ने उभरते खिलाड़ियों को प्रशिक्षण भी दिया। उसके सिखाए पढाए तीरंदाजों ने कई पदक भी जीते हैं। उसका नाम कई बार लाइफ टाइम द्रोणाचार्य अवार्ड के लिए भी भेजा गया लेकिन हर बार निराश हाथ लगी। पत्नी जेनी को उम्मीद थी कि उसे ओलंम्पिक वर्ष में सम्मान मिल जाएगा, जिसकी सम्मान राशि इलाज में काम आ सकती थी। लेकिन खेल अवार्डों की बन्दर बांट के चलते उसके नाम पर गौर नहीं किया गया। नतीजन वह और पत्नी जेनी बहुत निराश हैं और टूट चुके हैं।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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