कोई माने या न माने लेकिन भारतीय कुश्ती के सर्वकालीन श्रेष्ठ पहलवानों में शुमार योगेश्वर दत्त का मानना है कि खेल के लिए पढ़ाई से भी ज्यादा दिमाग कि जरुरत होती है। योगेश्वर ने पेफी के एक कार्यक्रम में सम्बोधित करते हुए कहा कि कुछ साल पहले तक प्रचलित ‘ खेलोगे कूदोगे होंगे खराब’ वाली कहावत अब निरर्थक लगती है, क्योंकि देश में लाखों करोड़ों पढ़े लिखे बेरोजगार घूम रहे हैं लेकिन जो खेलने कूदने में अव्वल है उसका जीवन सफल है।
लन्दन ओलम्पिक के कांस्य पदक विजेता ने कहा कि आज वह जो कुछ भी है खेल के दम पर है। उसे कुश्ती ने वह सब कुछ दिया जिसे सालों साल पढ़ने के बाद भी अर्जित नहीं कर सकता था। उसने शरीर और दिमाग का सही इस्तेमाल और कड़ी मेहनत कर ओलम्पिक, एशियाड, वर्ल्ड चैम्पियनशिप और तमाम बड़े आयोजनों में पदक जीते और नाम कमाया। चूँकि पढ़ने लिखने में दिल नहीं लगता था इसलिए अखाड़ा ज्वाइन किया और आज कह सकता हूँ कि जो कुछ हूँ कुश्ती की बदौलत हूँ। लेकिन योगेश्वर चाहते हैं कि हर खिलाडी को पर्याप्त शिक्षा भी ग्रहण करनी चाहिए, जोकि जीवन में बहुत काम आती है।
लिएंडर के पदक ने राह दिखाई:
योगेश्वर कहते हैंकि उसे शुरूआती दिनों में ओलम्पिक के बारे में कोई जानकारी नहीं थी लेकिन जब 1996 के अटलांटा ओलम्पिक में लिएंडर ने ओलम्पिक कांस्य जीता तो तब पता चला कि ओलम्पिक पदक के क्या मायने और महत्व होता है। उसी दिन से ओलम्पियन बनने और पदक जीतने का लक्ष्य बनाया और सफल रहा लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं है। सब कुछ छोड़ कर सिर्फ खेल पर ध्यान देना पड़ता है और यही मैंने किया।
अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में योगी के कोच रहे द्रोणाचार्य राज सिंह सुशील कुमार और योगेश्वर के बहुत करीब रहे हैं। राष्ट्रीय कैम्प में दोनों ने उनसे खेल के गुर सीखे। राज सिंह भी मानते हैं कि खिलाडी को पढ़ा लिखा होना चाहिए। उसे विदेशी कोच और सपोर्ट स्टाफ का समुचित लाभ उठाना है तो कमसे कम बात चीत की भाषा, डोप और खेल के नियमों कि जानकारी जरुरी है। राज सिंह ने योगेश्वर कि मेहनत और लगन कि प्रशंसा की और कहा कि वह देश का सबसे समझदार पहलवान रहा है और अब राजनीति में भी सफल होने जा रहा है क्योंकि उसके पास अच्छे शरीर के साथ साथ स्वस्थ दिमाग भी है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |