टेनिस जगत में बड़ी पहचान बनाने वाली और अंततः महाधमाके के साथ सन्यास की घोषणा करने वाली ऑस्ट्रेलिया की 25 वर्षीय एश्ले बर्टी का छोटी सी उम्र में रैकेट टांगने का फैसला खेल जगत में हैरानी के साथ देखा जा रहा है। दुनिया भर के खेल प्रेमी सकते में हैं और बर्टी से पूछ रहे हैं कि ऐसी भी क्या जल्दबाजी थी और क्यों उसने टाप फार्म के चलते सन्यास लिया है?
हालांकि भारत में उसके सन्यास पर कुछ खास नहीं कहा गया लेकिन बहुत से पूर्व खिलाड़ी कह रहे हैं कि उसे अभी कुछ एक साल और खेलते रहना चाहिए था। भारतीय खिलाड़ियों लिएंडर पेस, सानिया मिर्ज़ा और रोहन बोपन्ना को वर्षों तक कोर्ट में देखने वाले भारतीय टेनिस प्रेमी कह रहे हैं कि बर्टी को अभी कुछ साल और डटे रहना चाहिए था।
बर्टी के सन्यास के बाद भारतीय तीरंदाजी के बड़े नाम के रूप में पहचान बना चुकी दीपिका कुमारी को राष्ट्रीय टीम से बाहर करने की खबर छपी तो देश के कुछ खेल प्रेमियों को हैरानी हुई और कुछ उभरते खिलाड़ियों ने राहत की सांस भी ली। इसलिए चूंकि वह वर्षों से तीरंदाजी में बड़ा नाम रही, बड़े खेल सम्मान पाए, विश्व चैंपियन बनी लेकिन एशियाई खेलों और ओलंम्पिक में बस खानापूरी ही कर पाई। अंततः तीरंदाजी संघ को ना चाहते हुए उसे बाहर करना पड़ा।
भले ही मैरी कॉम अनेकों बार विश्व विजेता बनीं लेकिन एक ओलंम्पिक कांस्य ने उनके करियर को इतना लंबा खींच दिया कि उभरते खिलाड़ी उकता चुके हैं। पिछले दस सालों से हमारी सुपर स्टार बेवजह खेल रही है। लड़ झगड़ कर और अपने कद का फायदा उठा कर वह जैसे चाहे फेडरेशन को नचा रही है।
उम्र की धोखा धड़ी के लिए कुख्यात रहे अनेकों भारतीय खिलाड़ी विभिन्न खेलों को कब्जाए हुए हैं। हॉकी, फुटबाल, बास्केटबॉल, कुश्ती, तीरंदाजी, मुक्केबाजी, निशानेबाजी, एथलेटिक आदि खेलों में कई खिलाड़ी अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन बहुत पीछे छोड़ चुके हैं लेकिन फेडरेशन के भर्ष्ट अधिकारी और जुगाड़ू खिलाड़ी जगह खाली करने के लिए तैयार नहीं हैं। एक सर्वे से पता चला है कि आम भारतीय खिलाड़ी अपना श्रेष्ठ देने के बाद कम से कम पांच से दस साल फालतू खेलता है और प्रतिभाओं को आगे नहीं आने देता।
बर्टी के फैसले को लेकर अलग अलग राय व्यक्त की जा रही है। उसने अनेकों ग्रांड स्लैम जीते, वर्ल्डनम्बर वन रही और धमाके के साथ ही रैकेट भी टांग दिया। लेकिन भारतीय खिलाडी ऐसा नहीं कर सकते। वे तब तक मैदान नहीं छोड़ते जब तक वे अधिकारियों के लाडले बने रहते हैं या उन्हें धक्के मार कर बाहर नहीं किया जाता।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |