भारतीय हॉकी के महानतम खिलाड़ी दद्दा ध्यानचंद को भारत रत्न नहीं देने वाली सरकारों को इस देश ने माफ किया। जो सम्मान मेजर ध्यान चंद को नहीं मिल पाया उसके लिए क्रिकेट स्टार सचिन को सही हकदार मानने वाली व्यवस्था को भी माफ कर दिया गया। जब खेल रत्न से पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी का नाम हटाया गया और ध्यान चंद की आत्मा को सांत्वना देने हेतु खेल रत्न के साथ ध्यान चंद का नाम जुड़ा तो भी भारतीय खेल प्रेमी मौन रहे। लेकिन जब दर्जन भर खिलाड़ियों को खेल रत्न बना दिया गया तो हर किसी का माथा ठनका।
इसमें दो राय नहीं कि खिलाड़ियों के लिए खेल रत्न उतना ही महत्व रखता है, जितना आम भारतीय केलिए भारत रत्न का महत्व है। तो फिर एक साथ 12 खिलाड़ियों को खेल रत्न बनाए जाने के मायने क्या हुए? यही न कि जिसने सौ साल से भी अधिक के एथलेटिक इतिहास में देश के लिए पहला ओलंम्पिक गोल्ड जीता, उसकी उपलब्धि उतनी ही बड़ी हुई जितनी किसी टीम खेल में चौथा स्थान पाने वाले खिलाड़ी की। यह कहां का न्याय हुआ? खेल रत्न तो उन खिलाड़ियों को भी दिया जा रहा है जिन्होंने कोई बड़ा करिश्मा नहीं किया। ऐसा क्यों?
भारतीय खेलों के इतिहास में टोक्यो ओलंम्पिक का महत्व हो सकता है। सबसे ज्यादा पदक और वह भी एथलेटिक गोल्ड के साथ जीतना ऐतिहासिक प्रदर्शन तो है ही, साथ ही पैरालम्पिक में भी रिकार्ड पदक जीते। भले ही सभी पदक विजेता बड़े से बड़े सम्मान के हकदार हैं। लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि सबको एक ही तराजू से तौला जाए।
खेल रत्न के बंटवारे में जो उदारता दिखाई गई है, उसे लेकर खेल अवार्डों की गरिमा पर भी उंगली उठने लगी है। जिन 12 खिलाड़ियों को एकमुश्त सम्मान दिया गया है उनमें से ज्यादातर नीरज चोपड़ा के कद से बहुत छोटे हैं या यूं भी कह सकते हैं कि नीरज के साथ नाइंसाफी जैसा है।
कुछ वरिष्ठ खेल पत्रकार और पूर्व चैंपियन तो यहां तक कहने लगे हैं कि खेल रत्न सिर्फ एक खिलाड़ी को दिया जाना चाहिए, उसको जोकि अन्य से हटकर हो। मसलन हमारे पहले खेल रत्न विश्वनाथन आनंद, जोकि ओलंपियन नहीं थे लेकिन उनकी उपलब्धियां अभूतपूर्व थीं। 1991-92 में उनके सम्मान ने पुरस्कार को सम्मानित किया। 1994-95 में जब देश की पहली ओलंम्पिक पदक विजेता।महिला कर्णम मल्लेश्वरी को सम्मान मिला तो हर किसी ने फैसले को सराहा। लेकिन कुछ निशानेबाजों, हॉकी खिलाड़ियों, जिम्नास्ट, क्रिकेटरों और नौकाचालकों को सम्मान दिए जाने पर सवाल खड़े किए गए।
खेल रत्न को यदि सरकार और भारतीय खेलों के ठेकेदार सचमुच सबसे बड़ा और सम्मानित खेल अवार्ड मानते हैं तो उन्हें गंभीरता से मनन करने की जरूरत है। सम्मान उसी को मिले जो सचमुच सम्मान का हकदार है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |