बेशक, सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त ने ओलंपिक पदक जीत कर भारतीय कुश्ती में नये अध्याय की रचना की। दोनों ही गजब के पहलवान रहे हैं। लेकिन पंजाब के करतार सिंह जैसी उपलब्धि आज तक कोई भी भारतीय पहलवान अर्जित नहीं कर पाया है। उनका रिकार्ड अब तक अजेय है
है। जालंधर के करतार सिंह ने 1978 में बैंकाक और 1986 में स्योल एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीत कर ऐसा रिकार्ड कायम किया है जिसे तोड़ने में कोई भी भारतीय पहलवान अब तक सफलता हासिल नहीं कर पाया है। विदेशी भूमि पर दोहरा स्वर्ण जीतने वाले इस जाँबाज़ पहलवान के नाम एक रिकार्ड यह भी है कि उसने पहला स्वर्ण 90 किलो में और दूसरा 100 किलो में जीता। 1982 के दिल्ली एशियाई खेलों में सतपाल ने स्वर्ण और करतार ने रजत पदक जीता था। इतना ही नहीं, कामनवेल्थ चैंपियनशिप, अनेक अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों और ख़ासकर वेटरन मुकाबलों में करतार ने ढेरों अंतरराष्ट्रीय पदक जीते हैं और सबसे बड़ी उम्र तक अखाड़े में डटे रहने वाले योद्धा के रूप में जाने जाते हैं।
करतार न सिर्फ एक अच्छे पहलवान हैं अपितु एक नेक इंसान भी हैं। सुशील और योगेश्वर के प्रति उनके दिल में बड़ा सम्मान है और कहते हैं कि इन दोनों पहलवानों ने भारतीय कुश्ती की शान को बढ़ाया है और वह सब कर दिखाया जिसकी भारतीय कुश्ती को वर्षों से तलाश थी। 1980, 84 और 88 के ओलंपिक में भाग लेने के बावजूद कोई पद्क नहीं जीत पाने का उन्हें मलाल है लेकिन इस नाकामी के पीछे एक बड़ा कारण यह मानते हैं कि उस दौर में सुविधाओं का अकाल था। उनके अनुसार गुरु हनुमान से दाव पेंच सीखने का सौभाग्य उनके काम आया। भले ही गुरु हनुमान और राज सिंह जैसे गुरुओं से सीखने का लाभ मिला पर तब तक बाकी देश तकनीक के मामले में बहुत आगे निकल चुके थे।
शुरुआती वर्षों में उनके असली गुरु सिने स्टार और भारत में फ्री स्टाइल कुश्ती के जनक दारा सिंह थे। दारा सिंह के प्रयास से करतार को गुरु हनुमान के अखाड़े में प्रवेश मिला और इसके साथ ही उनकी सफलताओं ने नयी उड़ान भरी। करतार ना सिर्फ़ एक बेमिसाल पहलवान रहे अपितु उनकी गिनती पंजाब के सबसे कामयाब प्रशासक और पुलिस अधिकारी के रूप में भी की जाती है। पाँच साल तक पंजाब सरकार के खेल निदेशक पद पर रहते उन्होने खिलाड़ियों को रोज़गार देने का अभियान चलाया और तमाम खेलों से जुड़े खिलाड़ी विभिन्न विभागों में भर्ती किए गए। आईजी पुलिस के रूप में उनके कार्यकाल को खूब सराहा गया लेकिन खेल और ख़ासकर कुश्ती हमेशा उनकी प्राथमिकताओं में शामिल रहे।
2013 में सेवानिवृत हुए करतार सिंह आज भी पूरी तरह फिट हैं। उन्हें इस बात का मलाल है कि देश के लिए ओलंपिक पदक नहीं जीत पाए पर अपने किसी शिष्य को ओलंपिक गोल्ड के साथ देखना चाहते हैं।
करतार पहलवानों और खिलाड़ियों के लिए हमेशा उदाहरण माने जाते हैं। खेल से जुड़े रहने की आदत ने उन्हें एक अलग तरह की लोकप्रियता दी है। अपने एनआरआई दोस्तों की मदद से वह पंजाब में कुश्ती, मैराथन और अन्य खेलों के मेले सजाते रहे हैं और कहते हैं कि जब तक जीवन है, खेलता और खिलाता रहूँगा। वह मानते हैं कि चैंपियन पैदा करने वाली पंजाब की धरती के युवा भटक गए हैं। लेकिन बदलाव जरूर आएगा और फिर से पंजाब पहले की तरह खेल जगत में नाम-सम्मान कमाएगा।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |