कोर्ट के निर्देशानुसार देश के खेल मंत्रालय ने सबसे लोकप्रिय मार्शल आर्ट्स खेल कराटे को पटरी पर लाने और लुटेरों से बचाने के लिए कड़े और सराहनीय कदम उठाने का फैसला किया है । हाल ही में राजधानी के इंदिरा गाँधी स्टेडियम में आयोजित दो दिवसीय ट्रायल द्वारा एशियाई खेलों की टीम का चयन किए जाने को लेकर कराटे में उम्मीद और उत्साह का माहौल देखने को मिला । फिलहाल खिलाडियों का प्रदर्शन भारतीय खेल प्राधिकरण की फाइलों में बंद है और उम्मीद की जा रही है कि चीन में होने जा रहे एशियाड में भारतीय खिलाडी भाग ले पाएंगे ।
उम्मीद और उत्साह के चलते कराटे की गुटबाजी पर विराम लगता नज़र आ रहा है लेकिन साई की देखरेख में आयोजित ट्रायल के दो दिन बाद ही तालकटोरा स्टेडियम में एआईकेएफ द्वारा राष्ट्रीय चैम्पियनशिप का आयोजन बताता है कि खेल के उत्थान को लेकर गम्भीरत की कमी अब भी बरकरार है । हालाँकि आयोजक कह रहे हैं कि तथाकथित राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में आठ सौ के लगभग कराटेबाजों ने हाथ आजमाए लेकिन स्टेडियम का खचाखच भरा होना संख्या को दोगुना करता है । भले ही कुछ विरोधी गुटों ने आयोजकों पर गंभीर आरोप लगाए लेकिन छह साल से बड़े खिलाडियों का उत्साह , खेल के प्रति उनका समर्पण , उनकी फिटनेस और विशेषकर माता पिता का जुड़ाव दर्शनीय लगा ।
खिलाडी और उनके मां बाप जानते हैं कि दो तीन हजार की फीस देकर उनके बच्चे को सौ रुपए का मैडल थमाया जाएगा, उन्हें यह भी पता है कि इस खेल में कोई भविष्य नहीं है , फिरभी वे इसलिए जुड़े हुए हैं क्योंकि उनके बच्चे की इच्छा है और उसके स्कूल का दबाव भी होता है । दूसरा पहलू यह है कि ज्यादातर माता पिता अपने बच्चों को सेल्फ डिफेंस का पाठ पढ़ाना चाहते हैं | खासकर देश के बिगड़ते माहौल में बालिकाओं को आज बचाव के तौर तरीके सीखने जरुरी हैं । कुछ अभिभावक कहते हैं कि भले ही अन्य खेलों में मान सम्मान , पैसा और मैडल मिलते हैं लेकिन उनका खेल बच्चों को फिट और तन्दुरुशत बनाता है ।
चूँकि कराटे की तरफ बच्चे और उनके माता पिता खिंचे चले आते हैं और भागीदारी में यह खेल क्रिकेट से भी आगे है, इसलिए कराटे एक कला के रूप में लगातार लोकप्रिय हो रहा है । एआईकेएफ कराटे की सबसे पुरानी और मान्यता प्राप्त संस्था है जिसे तोड़ मरोड़ कर कई संस्थाएं बनाई गईं , जिन्होंने अपने अपने तरीके से खेल को लूटा । एक अनुमान के अनुसार देश में हर रोज कोई न कोई कराटे चैम्पियनशिप आयोजित की जाती है, अर्थात साल में 365 से भी ज्यादा आयोजन होते हैं। आयोजक दोनों हाथों से कमाते हैं तो खिलाडियों और अभिभावकों को भी कोई मलाल नहीं ।
एआईकेएफ की राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लेने वाले खिलाड़ियों और उनके अभिभावकों से बात करने पर पता चला कि ज्यादातर ने उम्मीद छोड़ दी है। उन्हें नहीं लगता कि कराटे में कभी सुधार हो पाएगा।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |