कल्याण चौबे की भारी भरकम जीत पर जश्न मनाने वाले और बाई चुंग भूटिया को मात्र एक वोट मिलने पर हंसी उड़ाने वालों को फिलहाल कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा। जीत के नशे में चूर कल्याण चौबे के जी हुजूरों का उत्साह और उन्माद वाजिब है लेकिन इस कदर जीतने और पराजित भूटिया को मात्र अपना वोट मिलना किसी अपशकुन की तरफ इशारा करता है ।
देर से ही सही एक खिलाडी ने भारतीय फुटबाल का शीर्ष पद संभाल लिया है वरना पिछले कई सालों से राजनीति और सत्ता के खिलाडी भारतीय फुटबाल को अपनी ठोकर पर नचा रहे थे । कल्याण चौबे का सितारा उस समय बुलंद हुआ है जबकि भारतीय फुटबाल अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है । जियाउद्दीन, प्रिय रंजन दास मुंशी और प्रफुल्ल पटेल के कार्यकाल में भारतीय फुटबाल सिर्फ अपयश और अंततः फीफा का निलंबन ही पा सकी ।
इसमें दो राय नहीं कि बाई चुंग भूटिया के विरुद्ध चुनाव जीतने वाले कल्याण चौबे का कद राजनीति के चलते खासा ऊंचा हो गया है लेकिन एक मंजे हुए खिलाडी का चुनाव लड़ना और औंधे मुंह गिरना किस ओर संकेत करता है ? बेशक, टाटा फुटबाल अकादमी से अपने करियर कि शुरुआत करने वाले कल्याण ने मोहन बागान, ईस्ट बंगाल, जेसीटी और सलगांवकर गोवा जैसे नामी क्लबों के गोलकीपर की भूमिका बखूबी निभाई और खूब नाम कमाया । लेकिन एक खिलाडी के बतौर कल्याण का रिकार्ड बाई चुंग जैसा कदापि नहीं रहा |
भारतीय फुटबाल को उसका खिलाडी अध्यक्ष मिल गया है लेकिन जानकार और खेल पंडित बाइचुंग को मिले मात्र एक वोट से चिंतित हैं । इसलिए चूँकि खिलाडियों की अधिकाधिक भागीदारी की मांग करने वालों को यह शुभ संकेत नहीं लगता। एक मंजे हुए खिलाडी को इस कदर बेइज़्ज़त होना पड़ सकता है शायद ही किसी ने सोचा होगा । सुनील क्षेत्री के उदय से पहले भूटिया मोहन बागान, ईस्ट बंगाल, जेसीटी , सलगांवकर और यूनाइटेड सिक्किम जैसे क्लबों में खेल कर तत्कालीन फुटबाल में भारत के स्टार खिलाडी बने । भारत के लिए 104 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेल कर 40 गोल जमाने वाले वह सफलतम खिलाडी रहे । भारतीय फुटबाल से जुड़े खिलाडी और कोच भूटिया को बड़ा खिलाडी तो मानते हैं लेकिन उनके घरेलू राज्य सिक्किम ने ही अपने स्टार खिलाडी की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं किया । दूसरी तरफ कल्याण को गुजरात और अरुणाचल जैसे प्रदेशों का समर्थन मिलने का मतलब है कि उनकी राजनीतिक पकड़ भूटिया के मुकाबले दमदार रही । कुछ खिलाडियों और अधिकारियों का यहाँ तक कहना है कि जिस शख्स को अपने राज्य में ही पसंद नहीं किया जाता उसे फुटबाल का उच्च पद सौंपना वैसे भी ठीक नहीं था । लेकिन क्या उसे मात्र एक वोट मिलना भारतीय फुटबाल का कलुषित चेहरा नहीं दर्शाता ? क्या इस चयन में राजनीति की बू नहीं आती?
कुछ दिन पहले तक बाइचुंग भूटिया नये अध्यक्ष से ज्यादा चर्चित नाम था लेकिन देश की सबसे बड़ी पार्टी से जुड़े होने का लाभ निश्चित रूप से कल्याण के लिए कल्याणकारी साबित हुआ । सीधा सा मतलब है कि भले ही कोई खिलाडी पहली बार फेडरेशन अध्यक्ष बना है लेकिन यह सब राजनीति के खेल का पुरस्कार ही कहा जाएगा । वरना लोकप्रियता के मामले में बाइचुंग भूटिया बीस ही थे । यह बात अलग है कि वह खिलाडी से नेता बनने का प्रयास वर्षों से कर रहे हैं पर उनका हर दांव उल्टा पड़ता चला गया। लेकिन इस बार जैसी फजीहत हुई है उसकी भरपाई वर्षों तक भी शायद ही हो पाएगी |
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |