टोक्यो ओलम्पिक में नीरज चोपड़ा के स्वर्ण पदक के साथ जीते गए कुल आठ पदकों से देश की सरकार और खेल मंत्रालय ने खिलाडियों के स्वागत सत्कार और उन्हें सम्मानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अति उत्साह में पड़ कर 12 खिलाडियों को खेल रत्न बना दिया गया । सबको खुश करने के लिए सभी पुराने रिकार्ड तोड़ दिए गए और 62 खेल हस्तियों ने राष्ट्रीय खेल अवार्ड प्राप्त किए जोकि अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है । इस कदम का स्वागत तो हुआ लेकिन एक साल बाद जब 2022 के खेल अवार्डों के चयन की बात आई तो अवार्डों के लिए गठित समिति को खेल रत्न के काबिल बस एक खिलाडी मिला, जिसका नाम है अचंता शरथ कमल ।
बेशक शरथ कमल एक बेहतरीन खिलाडी है और वेटरन होने के बावजूद कोर्ट में डटा हुआ है । लेकिन जिस तरह खेल अवार्डों की बन्दर बाँट हो रही है उसे लेकर देश के नाराज खिलाडियों और कोचों की संख्या भी बढ़ती जा रही है । एक साथ एक साल में दर्जन भर खेल रत्न बांटने की मज़बूरी समझ में आ रही है । कुछ पूर्व चैम्पियनों का मानना है कि अब खेल अवार्डों के मायने बस लाखों की पुरस्कार राशि है जोकि लगातार बढ़ती जा रही है ।
यह सही है कि टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय खिलाडियों ने लन्दन के मुकाबले एक पदक ज्यादा जीता । पुरुष हॉकी को 41 साल बाद पदक के दर्शन हुए लेकिन पुरस्कार पाने वालों में ऐसे बहुत से नाम शामिल हैं जिन्होंने कोई बड़ा तीर नहीं चलाया । खासकर, खेल रत्न बांटने में इस कदर उदारता दिखाई गई जिसे लेकर बहुत से पूर्व खिलाडियों ने नाखुशी ज़ाहिर की और सीधे सीधे कहा कि खेल अवार्डों की गरिमा बनाए रखना जरूरी है ।
शुरूआती वर्षों में एक या दो खिलाडियों को खेल रत्न दिए गए , जिनका कद बहुत ऊंचा था । मसलन विश्वनाथन आनंद , मल्लेश्वरी , अभिनव बिंद्रा, सुशील , योगेश्वर दत्त , सचिन तेंदुलकर , बिजेंद्र , गगन नारंग, मैरीकॉम , पीवी सिंधु आदि । इसी प्रकार नाम्बियार, गुरु हनुमान , इलियास बाबर , ओपी भारद्वाज , हवा सिंह , राज सिंह , बलदेव सिंह , गुरचरण गोगी , कौशिक, अजय बंसल और कई अन्य कोचों की पहचान हटकर रही लेकिन कुछ द्रोणाचार्य और अर्जुन ऐसे हैं जिन्हें खुद के पुरस्कृत होने की शायद ही कभी उम्मीद रही होगी । लेकिन यहां सब कुछ चलता है । कई द्रोणाचार्य ऐसे हैं, जिनका नाम तक नहीं सुना गया । आजीवन द्रोणाचार्य अवार्ड और ध्यान चंद अवार्डों को पाकर धन्य होने वाले महाशय दिल पर हाथ रख कर अपना आकलन कर सकते हैं ।
खिलाडियों और गुरुओं का एक बड़ा वर्ग मानता है कि जैसे जैसे खेलों में थोड़ा बहुत सुधार हो रहा है अवार्डों को लेकर मारा मारी भी बढ़ रही है । यही कारण है कि लगातार प्रयासरत रहने वाले अवसरवादी एक न एक दिन सम्मान पा जाते हैं। नतीजा सामने है बहुत से सम्मानित ऐसे हैं जिन्हें उनके खेल के खिलाडी- कोच तक नहीं पहचानते ।
खेल रत्न: शरथ कमल
अर्जुन अवॉर्ड : सीमा पूनिया, एल्डोस पॉल, अविनाश साबले (एथलेटिक्स), लक्ष्य सेन, प्रणय (बैडमिंटन), अमित पंघाल, निकहत (बॉक्सिंग), भक्ति कुलकर्णी, प्रगनाननंदा (शतरंज), दीप ग्रेस (हॉकी),सुशीला देवी (जूडो), साक्षी कुमारी (कबड्डी), नैनमोनि सैकिया (लॉन बाउल्स), सागर ओवहालकर (मलखंब), एलावेनिल, ओमप्रकाश (शूटिंग), श्रीजा अकुला (टेबल टेनिस), विकास ठाकुर (वेटलिफ्टिंग), अंशु मलिक, सरिता (कुश्ती), परवीन (शु), मानसी जोशी, तरुण ढिल्लों (पैरा बैडमिंटन), स्वप्निल पाटिल (पैरा तैराकी), जर्लिन अनिका (डीफ बैडमिंटन)
द्रोणाचार्य अवॉर्ड (नियमित वर्ग) : जीवनजोत (तीरंदाजी), मोहम्मद अली कमर (बॉक्सिंग), सुमा शिरूर (पैरा शूटिंग), सुजीत मान (कुश्ती)
द्रोणाचार्य (लाइफ टाइम) : दिनेश लाड (क्रिकेट), बिमल घोष (फुटबाल), राज सिंह (कुश्ती)
ध्यानचंद अवॉर्ड : अश्वनी अकुंजी (एथलेटिक्स), धर्मवीर सिंह (हाँकी), बीसी सुरेश (कबड्डी ), नीर बहादुर गुरंग (पैरा एथलेटिक्स)
राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार : ट्रांस स्टेडिया एंटरप्राइजेज लिमिटेड, कलिंगा इंस्टीट्यूट इंडस्टियल टेक्नोलॉजी, लद्दाख स्की स्नोबोर्ड एसोसिएशन।
मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ट्रॉफी: गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |