खेल मंत्रालय द्वारा नवनिर्वाचित भारतीय कुश्ती फेडरेशन (WFI) को निलंबित किए जाने के बाद बयानबाजी की बाढ़ सी आ गई है । जो नेता, अभिनेता, पहलवान , खिलाड़ी और अवसरवादी महीनों तक चुप बैठे रहे, जिनके सामने महिला पहलवानों की दुर्दशा हुई उनमें से कुछ एक की जुबान खुल गई है। जिन्हें साक्षी, बजरंग और विनेश का रोना धोना और आक्रोश नाटक लग रहा था, अब वे भी घड़ियाली आंसू बहाने लगे हैं। चूंकि सरकार ने चुनी गई फेडरेशन को दुत्कार दिया है इसलिए सरकार के कृपापात्र अब पाला बदल रहे हैं।
चूंकि ओलंपिक पदक विजेता मुक्केबाज विजेंद्र सिंह सरकारी नहीं हैं इसलिए उनकी प्रतिक्रिया समझ आती है। विजेंद्र ने सरकार के कदम का स्वागत किया है लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि सरकार को यह कदम महीनों पहले उठा लेना चाहिए था। महिला पहलवान गीता फोगाट ने भी चुप्पी तोडी है और सरकार के निर्णय का स्वागत किया है। लेकिन गीता भी सरकार के कदम उठाने से पहले चुप रहीं। ठीक वैसे ही जैसे बहन बबिता फोगाट ने खुल कर पहलवानों का पक्ष नहीं लिया, उनकी पीड़ा को नहीं पहचाना।
हैरानी तब हुई जब उड़न परी, पायोलो एक्सप्रेस, गोल्डन गर्ल और न जाने कैसे कैसे संबोधनों से सुसज्जित पीटी ऊषा को भी महिला पहलवानों का दुख दर्द नजर नहीं आया। सबसे बड़ी हैरानी वाली बात यह थी कि महिला सशक्तिकरण का ढोल पीटने वाले या तो खामोश थे या रोती बिलखती महिला पहलवानों पर गंदी राजनीति करने का आरोप लगाते फिर रहे थे।
उस समय जबकि बजरंग पूनिया की अगुवाई में साक्षी, विनेश , संगीता और कुछ अन्य पहलवान देशवासियों से मदद मांग रहे थे, प्रधान मंत्री और खेल मंत्री से मदद की गुहार लगा रहे थे तब देश की सरकार मौन क्यों साधे रही ? क्यों मामले को इतना बढ़ने दिया गया? लेकिन नियमानुसार चुनाव के बाद सरकार को कड़ा कदम क्यों उठाना पड़ा? ऐसा शायद ही पहले कभी हुआ हो , जबकि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई इकाई को दूसरे ही दिन निलंबन झेलना पड़ा हो।
अब सरकार के बदलते मूड के साथ बहुत से पाला बदलू भी बदल रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे एक दिन में ही ब्रज भूषण शरण सिंह और संजय सिंह के तेवर बदल गए हैं?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |