भारतीय खेलों पर सरसरी नज़र डालें तो उन खेलों में अच्छे रिजल्ट देखने को मिले हैँ, जिनकी बुनियाद स्कूल, कालेज औऱ तत्पश्चात सांस्थानिक स्तर पर मज़बूत रही है l मसलन जिन खेलों औऱ उनके प्रमुखों ने स्कूल स्तर पर श्रेष्ठ का चयन किया औऱ चुने गए खिलाड़ियों को कॉलेज औऱ सीनियर स्तर पर कड़ी परीक्षा में झोंक कर राष्ट्रीय टीम को तैयार किया है उनकी प्रगति की रफ़्तार तेज रही है लेकिन जो खेल सिर्फ खाना पूरी तक सीमित रहे उनका हाल देश के तमाम टीम खेलों सा है l
कुछ साल पीछे चलें तो भारतीय हॉकी औऱ फुटबॉल टीमों का पिछला इतिहास शानदार रहा है l रेलवे, सेना, पुलिस, तेल कंपनियों, बैकों, बीमा कंपनियों, सरकारी औऱ गैर सरकारी विभागों में सेवा रत खिलाड़ियों ने भारतीय खेलों की तरक्की, प्रगति में जो योगदान दिया है उसे शायद भुला दिया गया है l हॉकी, फुटबाल, वॉलीबॉल, बास्केटबॉल औऱ अन्य खेलों की पिछली क़ामयाबी को देखें तो उनके ज्यादातर खिलाड़ी सरकारी औऱ अन्य विभागों से निकलकर आगे बढे औऱ देश का नाम रोशन करने में सफल रहे l इंडियन आर्मी, सिख रेजिमेंट सेंटर, सीमा बल, पंजाब पुलिस, आंध्रा पुलिस, केरल पुलिस, ई एम ई, इंडियन एयर लाइन्स, एयर इंडिया, रेलवे, विभिन्न बैंकों, इंडियन आयल, भारत पेट्रोलियम आदि संस्थानों के खिलाड़ियों ने भारतीय खेलों की सफलता में बड़ा योगदान दिया l तब तक आई लीग, आईएसएल, हॉकी इंडियाऔऱ अन्य लीग आयोजन अस्तित्व में नहीं थेl भारतीय फुटबाल, हॉकी औऱ अन्य खेल लीग आयोजनों के अस्तित्व में आने के बाद खेल औऱ खिलाड़ियों को भले ही आर्थिक लाभ मिला लेकिन राष्ट्रीय टीमों के प्रदर्शन में सुधार नज़र नहीं आता l खासकर, आईएसएल की शुरुआत के बाद से फुटबाल में गिरावट का क्रम जारी है l हॉकी में भले ही लगातार दो ओलम्पिक काँस्य जीते हैँ लेकिन स्थाइत्व की कमी साफ नजर आती है l
पूर्व खिलाड़ियों औऱ कोचों की राय में फुटबाल, हॉकी, बास्केट बॉल, वोल्रीबॉल औऱ तमाम टीम खेलों में सांस्थानिक टीमों का गठन भारतीय खेलों की पहली बड़ी जरुरत है l ऐसा करने से जहाँ एक ओर खिलाड़ियों की बेरोजगारी दूर होगी तो साथ ही खेल औऱ खिलाड़ियों को क्लब माफिया औऱ भ्र्ष्ट तंत्र से भी मुक्ति मिलेगी l क्या सरकार बेरोजगार खिलाड़ियों की लम्बी होती कतार पर ध्यान देगी, उन्हें रोजगार देने पर विचार करेगी?
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Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |