क्रोशियन अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉलर और कोच इगोर स्टिमैक अगले साल होने वाले एएफसी एशियन कप तक भारतीय टीम के कोच बने रहेंगे । नव गठित एआईएफएफ की तकनीकी समिति ने एकमत से उन्हें जारी रखने के लिए हरी झंडी दिखाई है । मई 2019 में उन्हें भारतीय टीम के साथ अनुबंधित किया गया था । दो साल बाद उनके अनुबंध को आगे बढ़ाया गया और अब एक बार फिर से तोहफा दिया गया है ।
स्टिमैक पर मेहरबानी का कारण यह नहीं है कि उसके कोच रहते भारत ने एशियाड जीता है या ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई किया है। वर्ल्ड कप के लिए भी भारतीय टीम पात्रता नहीं पा सकी है । हालाँकि पूर्व अध्यक्ष दास मुंशी और प्रफुल्ल पटेल झूठे आश्वासन देते रहे लेकिन भारतीय फुटबाल का स्तर आज तक नहीं सुधर पाया है । कई गोरे कोच आए गए । उन्होंने खूब सब्जबाग दिखाए लेकिन आज भी भारतीय फुटबाल 104 वें पायदान पर खड़ी है । दरअसल ,स्टिमैक को इसलिए बनाए रखा गया है क्योंकि उसके कोच रहते भारत एएफसी एशियन कप के लिए क्वालीफाई हुआ था।
उसके कार्यकाल की उपलब्धियों की बात करें तो भारत ने अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन सैफ कप में किया है, जिसमें फुटबाल जगत की सबसे फिसड्डी टीमें भाग लेती हैं । एशिया कप क्वालीफायर में अपने मैदान पर बेहद हलकी टीमों से खेल कर आगे बढे तो दोस्ताना मैचों में यूएई से बुरी तरह हारे । बेहरीन, बेलारूस और जॉर्डन के हाथों भी परास्त हुए । वर्ल्ड कप क्वालीफायर में सात मैचों में हार का सामना करना पड़ा और मात्र एक जीत दर्ज कर पाए । फिलहाल, विएतनाम और सिंगापुर की उपस्थिति में खेले जाने वाले टूर्नामेंट के लिए स्टिमैक को दाइत्व सौंपा गया है ।
इसमें दो राय नहीं कि भारतीय टीम के कोच को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाना पहचाना जाता है और पिछले तीन सालों में उसने खिलाडियों के साथ अच्छा ताल मेल भी बैठा लिया है । कल्याण चौबे और शाजी प्रभाकरन की जोड़ी को कोच ने मना लिया है, जिन्होंने तकनीकी समिति में जाने माने पूर्व खिलाडियों को स्थान दे कर सराहनीय काम किया है। लेकिन अब वक्त आ गया है कि फेडरेशन विदेशी कोचों पर पूरी तरह निर्भर रहना छोड़ दे और हो सके तो अपने कोचों के लिए भी अवसर खोजे जाएं । पिछले तीस सालों से विदेशी कोचों पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं और अपनों को पूरी तरह दुत्कार दिया गया है । बावजूद इसके परिणाम जस के तस हैं, बल्कि और नीचे गिर रहे हैं ।
भारतीय फुटबाल फेडरेशन को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश में अब स्वदेशी को लेकर काफी कुछ कहा सुना जा रहा है और प्रयोग भी किए जा रहे हैं । लेकिन देश की फुटबाल में स्वदेशी के नारे को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा । हमारे पूर्व खिलाडी और जाने माने कोच वर्षों से अपनी बारी के इन्तजार में हैं , जिनमें से ज्यादातर निराश और हताश होकर फुटबाल से दूर हो गए हैं । जिस फेडरेशन को बाइचुंग, विजयन, शाबिर अली, हरजिंदर सिंह , मनोरंजन भट्टाचार्य जैसे पूर्व खिलाडियों की सेवाएं और सुझाव मिल रहे हैं उसे अपने कोचों को गंभीरता से जरूर लेना चाहिए। वरना … आप खुद समझदार हैं ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |