आज़ादी बाद के 75 सालों में यदि भारत ने किसी खेल में सबसे ज्यादा यश पाया है तो वह निसंदेह हॉकी है और यदि किसी खेल ने देश वासियों को सबसे ज्यादा आघात पहुँचाया है तो वह भी हॉकी ही है । आज़ाद भारत इस खेल को अनमोल विरासत के रूप में साथ लाया था लेकिन अपने महान खिलाडियों की अनमोल धरोहर को भारतीय हॉकी और उसके कर्णधार पचा नहीं पाए और वक्त के साथ साथ हम इस खेल में पिछड़ते चले गए।
हॉकी जादूगर दद्दा ध्यानचंद , रूप सिंह, ज़फर, दारा, मसूद, हुसैन आदि खिलाडियों ने 1928 , 32 और 36 के ओलम्पिक में खिताबी तिकड़ी जमा कर भारत को दुनियाभर में पहचान दिलाई, जिसे आज़ादी के बाद किशन लाल, केडी सिंह बाबू, त्रिलोचन सिंह, जेंटल, अख्तर, क्लाडियस, महान बलबीर सिंह, धरम सिंह, केशव दत्त, उधम सिंह, शंकर लक्ष्मण, आर एस भोला, हरदयाल जैसे खिलाडियों ने लगातार तीन और ख़िताब जीत कर श्रेष्ठता की मुहर लगा दी ।
रोम ओलम्पिक में पहली बार भारत को पकिस्तान के हाथों खिताब गंवाना पड़ा जिसे टोक्यो ओलम्पिक 1964 में फिर से कब्जाया । यह भारतीय हॉकी का सातवां ओलम्पिक स्वर्ण पदक था । हालाँकि 1980 में भारत फिर चैम्पियन बना लेकिन अमेरिकी बायकाट के चलते इसे आधा अधूरा ओलम्पिक आँका जाता है । 1975 का विश्व कप जीतने के बाद से हॉकी की वापसी की उम्मीद बढ़ी थी लेकिन यह सपना क्षणिक था|
आठ स्वर्ण जीतने के वाली भारतीय हॉकी फिसलती चली गई और फिर ऐसा वक्त भी आया जब हॉकी का बेताज बादशाह ओलम्पिक का टिकट नहीं पा सका । दिन पर दिन और साल दर साल भारतीय हॉकी पिछड़ती चली गई। ऐसा इसलिए क्योंकि गन्दी राजनीति हॉकी में घुसपैठ जमा चुकी थी । आर प्रसाद के बाद केपीएस गिल और फिर नरेंद्र बत्रा ने भरसक प्रयास किए लेकिन आज तक हमारी हॉकी जीवित होने का भरोसा नहीं दिला पाई है।
जो लोग टोक्यो ओलम्पिक के कांस्य पदक को हॉकी की वापसी का संकेत मान रहे थे उन्हें कॉमनवेल्थ खेलों में ऑस्ट्रेलिया के हाथों हुई पिटाई से गहरा आघात पहुंचा है । आने वाले सालों में हॉकी की हालत सुधरने के कम ही आसार नजर आ रहे हैं क्योंकि जिस नरेंद्र बत्रा ने आज़ाद भारत की पहली लीग की शुरुआत की थी और जिसे विश्व हॉकी का शीर्ष पद प्राप्त हुआ था उसे ओलम्पिक और हॉकी बिरादरी से निकाल दिया गया है ।
कभी नकली घास का रोना तो कभी अम्पायरों को कोसना और अक्सर साधन सुविधाओं के लिए चिल पों मचाने वाले खिलाडी स्वंत्रता के बाद के 75 सालों में अपने तथाकथित राष्ट्रीय खेल को अर्श से फर्श पर पटक चुके हैं । एक समय पकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और हालैंड जैसे देश भारतीय हॉकी का मान मर्दन कर रहे थे लेकिन आज बेल्जियम और अर्जेंटीना भी बड़ी ताकत बन कर उभरे हैं और हमारी हॉकी के लिए खतरे बढ़ते जा रहे हैं । विदेशी कोचों और विदेश दौरों पर करोड़ों खर्च करने के बाद भी भारतीय हॉकी 42 साल से स्वर्ण पदक का मुंह नहीं देख पाई है । अर्थात आज़ादी बाद कमाया कम गंवाया ज्यादा है ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |