फीफा ने भारतीय फुटबाल की जैसी हवा निकाली है अब शायद हॉकी के साथ भी वही सब हो सकता है, क्योंकि हॉकी भी अपनी चाल भूल गई है । खासकर , तब से जबसे इंडियन हॉकी फेडरेशन ने हॉकी इंडिया का चोला धारण किया है, तब से भारतीय हॉकी में मनमर्जी और तानाशाही इस कदर हावी है कि सदस्य इकाइयां अस्त व्यस्त हो गई हैं । कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति से अंतर्राष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन की टीम जरूरी बात कर चुकी है और एक बार फिर से तीसरे पक्ष की दखलंदाजी को बर्दाश्त नहीं करने की हिदायत भी दी गई है ।
एफआईएच की टीम जल्दी से जल्दी हॉकी इंडिया के विवाद को सुलझाने के पक्ष में है ताकि सही समय एफआईएच के संविधान के अनुसार चुनाव हो सकें साथ ही हॉकी इंडिया अपने नए संविधान के अनुरूप काम कर सके । यदि दो महीने में यह सब तय नहीं हो पाया तो हॉकी इंडिया को बुरे दिन देखने पड़ सकते हैं ।जैसा कि फुटबाल के साथ हुआ वही सब हॉकी को झेलना पड़ सकता है । जी हाँ अब बारी हॉकी की है और समय रहते नहीं सुधरे तो हॉकी इंडिया को भी निलंबन झेलना पड़ सकता है ।
महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि भारतीय हॉकी को बिरादरी बाहर किया जाता है तो भुवनेश्वर और राउरकेला में 13 से 29 जनवरी तक आयोजित होने वाले पुरुष हॉकी वर्ल्ड कप की मेजबानी छिन सकती है । अर्थात जिस प्रकार फुटबाल में अंडर 17 महिला वर्ल्ड कप हाथ से निकलने का खतरा है कुछ वैसा हॉकी के साथ भी हो सकता है । भारतीय हॉकी के कर्णधार जानते हैं कि फीफा को सीओए की भूमिका नागंवार गुजरी और फीफा ने भारतीय फुटबाल को चौराहे पर खड़ा कर दिया है । डर है कहीं हॉकी को भी यही दिन न देखना पड़ जाए ।
कुछ समय पहले तक भारतीय हॉकी के लिए यह गर्व की बात थी कि हमारा अपना शीर्ष पद पर बैठा था , जिस पर गंभीर आरोप लगे और उसे पद त्याग करना पड़ा है । लेकिन पिछले कुछ सालों में भारतीय हॉकी में जिस प्रकार मनमानी का खेल खेला गया उसे देखते हुए डाक्टर नरेंद्र बत्रा का जाना तय लग रहा था । आरोप है कि देश में तमाम सदस्य इकाइयां बदतर हालत में हैं , शायद ही किसी प्रदेश में नियमित हॉकी खेली जा रही हो । तमाम खिलाडी और अधिकारी अस्त व्यस्त हैं और हॉकी इंडिया की दादागिरी से हैरान परेशान हैं । कुछ एक तो यहाँ तक कह रहे हैं कि एफआईएच हॉकी इंडिया के अधिकारियों को नाक रगड़ने के लिए कहें और देश में सर्वमान्य व्यवस्था कायम करे ।
हॉकी इंडिया पर सबसे बड़ा आरोप यह लगाया जा रहा है कि इस नाकारा इकाई ने देश के तमाम घरेलू आयोजनों का सत्यानाश कर दिया । जो यस मैन थे उनके आयोजन चलते रहे , उनके पसंदीदा खिलाडी राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बने , जिसका नतीजा सामने है । आम हॉकी प्रेमी पूछ रहा है कि 42 साल में एक ओलम्पिक कांस्य जीतने के आलावा भारतीय हॉकी ने किया क्या है?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |