कामनवेल्थ खेलों में भारतीय महिला हॉकी टीम का कांस्य पदक इसलिए बड़े मायने रखता है क्योंकि टोक्यो ओलंम्पिक में चौथा स्थान पाने वाली टीम को उलाहने दिए जा रहे थे कि कोरोना काल के चलते अन्य देशों ने अपनी श्रेष्ठ टीमें नही भेजीं इसलिए भारतीय टीम का काम आसान हो गया।
लेकिन इस बार कामनवेल्थ खेलों में महिलाओं ने जैसा प्रदर्शन किया है उसे लेकर बड़े बड़े हॉकी पंडितों की सोच भी बदल गई है। खासकर , कड़े मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया के हाथों मिली हार की हर तरफ चर्चा है। तत्पश्चात दक्षिण अफ्रीका को कांटे के मुकाबले में परास्त करना और अंततः पिछले चैंपियन न्यूज़ीलैंड पर जीत पाना अभूतपूर्व प्रदर्शन कहा जा सकता है।
हालांकि महिला टीम ने अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन 2002 के मैनचेस्टर खेलों में किया था । तब भारत ने मेजबान इंगलैंड को हरा कर पहली बार खिताब जीता था। इसके बाद भारतीय टीम लगातार प्रयासों के बाद भी नाकाम रही। लेकिन इस बार कांस्य जीतने वाली टीम के बारेमें इतना तो कहा ही जा सकता है कि उसका फ़िटनेस स्तर अन्य टीमों की तुलना में बेहतर है। दुनियाभर के हॉकी एक्सपर्ट्स भी मान रहे हैं कि भारतीय खिलाड़ियों की शारीरिक बनावट में खासा बदलाव आया है।
लेकिन ऐसा रातों रात नहीं हुआ है और नाही किसी चमत्कार से हो पाया है। यह सब कोचिंग का कमाल है। विदेशी कोचों की मेहनत सालों बाद रंग दिखारही है।
हॉकी जानकार और पूर्व ओलंपियन कह रहे हैं कि वर्तमान महिला टीम का फिटनेस स्तर किसी भी टीम से बेहतर है । यही कारण है कि ओलंम्पिक और राष्ट्रमंडल खेलों में अपेक्षाकृत छोटे कद की दुबली पतली लड़कियां सभी पर भारी पड़ीं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |