लगभग सौ रैंकिंग पीछे चल रही श्री लंका की टीम ने “ब्लू टाइगर्स” को बराबरी पर रोक कर यह साबित कर दिया है कि फुटबाल में रैंकिंग कोई मायने नहीं रखती। यह भी पता चल गया है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के पास ग्यारह ऐसे खिलाड़ी नहीं हैं जोकि उसकी फुटबाल की लाज बचा सकें। सवाल यह पैदा होता है कि आखिर कब तक भारतीय फुटबाल देश को शर्मसार करती रहेगी?
एस ए एफ एफ फुटबाल टूर्नामेंट में बांग्लादेश के बाद श्रीलंका ने भी भारतीय राष्ट्रीय टीम को बराबरी पर रोक कर यह यह संदेश दे दिया है कि की भारतीय फुटबाल में अब दम नहीं रहा और दुनिया के सबसे फिसड्डी देश भी उस पर भारी पड़ सकते हैं। यह हाल तब है जबकि भारतीय फुटबाल खिलाडी सालों से देशवासियों के खून पसीने की कमाई को बर्बाद कर रहे हैं। जो फुटबाल विश्व कप,ओलंम्पिक और एशियाड में भाग लेने के काबिल नहीं उसको क्यों और कब तक ज़िर चढ़ाया जाता रहेगा?
उस समय जब भारत ने 1951 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते थे तब हमारे पड़ोसियों में भारतीय फुटबाल से आँख मिलाने की हिम्मत तक नहीं थी। तब अपने कोचों की मौजूदगी में नतीजे पूरी तरह एकतरफा होते थे। पिछले चालीस सालों से विदेशी कोच सिखा पढ़ा रहे हैं। लाखों करोड़ों की अनुबंध राशि वाले कोच भारतीय फुटबाल को एक कदम भी आगे नहीं बढा पाए।
बेशक’ ‘विदेशी कोच सबसे बड़े फसाद की जड़ हैं। पहले पहल वे भारतीय फुटबाल को सोया शेर बताते हैं। फिर टीम के खलीफा प्रवृति के खिलाड़ियों से सेटिंग बैठा कर साईं और फेडरेशन के अज्ञानियों को बरगलाते हैं और अपना अनुबंध बढ़ाते हैं। अंततः इस तोहमत के साथ स्वदेश लौटते हैं की भारतीय फुटबाल का कोई भला नहीं कर सकता। खैर, ये तो वे सही कहते हैं की भारतीय फुटबाल का भला नहीं हो सकता । सवाल यह पैदा होता है की सरकार क्यों बेवजह देश वासियों के खून पसीने की कमाई लुटा रही है? क्यों कोई नेता संसद में यह सवाल नहीं पूछता की फेडरेशन का अध्यक्ष दागी करार दिए जाने के बावजूद पद पर क्यों जमा बैठा है ? क्यों हमारे चारण भाट भारतीय टीम को ब्लू टाइगर्स कह कर संबोधन करते हैं?
यह सही है की खेल में हार जीत होती रहती है लेकिन भारतीय फुटबाल को शायद यह भी पता नहीं की पिछली बार कब और किससे जीते थे। जो देश कभी एशियाई फुटबाल का बादशाह था आज दुनिया के सबसे बड़े और लोकप्रिय खेल का जोकर बन कर रह गया है। कहाँ है वर्ल्ड कप खेलने का दावा करने वाले ?
भले ही भारत आठवीं बार सैफ कप जीत जाए लेकिन भारतीय फुटबाल की कलई खुल चुकी है। हो सकता है कुछ लोगों को बुरा लगे लेकिन सच्चाई यह है कि भारत शेष विश्व से कई साल पीछे चल रहा है। फुटबाल में झूठ और दिखावे के अलावा कुछ भी नहीं बचा।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |