भारतीय फुटबॉल ने पिछले कुछ महीनों में जो मान-सम्मान कमाया है उसके आधार पर फीफा रैंकिंग में भारत 116वें स्थान पर जा गिरा है। जहां तक एशियाई रैंकिंग की बात है तो हम फिलहाल 22वें नंबर हैं। भले ही एएफसी एशियन कप में भारत को ऑस्ट्रेलिया, उज्बेकिस्तान और सीरिया के हाथों हार का सामना करना पड़ा, जो कि रैंकिंग और खेल के स्तर के लिहाज से बेहतर हैं।
पिछले कुछ सालों में भारतीय फुटबॉल में सुधार के लिए अनेक उपाय किए गए। विदेशी कोचों की नियुक्ति बदस्तूर जारी है, सरकार और अन्य माध्यमों से करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं लेकिन खेल का स्तर यह कि भारतीय फुटबॉल चंद दक्षिण एशियाई देशों से ही निपट सकती है। जापान, ईरान, कोरिया, कतर, सऊदी अरब, इराक, उज्बेकिस्तान, यूएई, जॉर्डन आदि देशों की आबादी मिलाकर भी भारत से एक चौथाई है लेकिन ये सभी देश एशिया में भारत से बेहतर स्थिति में हैं।
एआईएफएफ दावा करता है कि भारत को अगले या दो-चार वर्ल्ड कप के बाद फीफा के इस शीर्ष टूर्नामेंट में खेलने का मौका मिल जाएगा। लेकिन सच्चाई यह है कि जो देश महाद्वीप के 25 टॉप में शामिल नहीं है उसके लिए वर्ल्ड कप खेलना कैसे संभव हो पाएगा। भले ही फीफा ने 2026 विश्व कप में 48 देशों और एशिया से 8-9 देशों को शामिल करने फैसला किया है, लेकिन एशिया में भारतीय फुटबॉल बहुत पीछे चल रही है।
एशियन कप में भारत के फीके प्रदर्शन के बाद फुटबॉल विशेषज्ञों और विदेशी कोचों ने एक राय में कहा है कि भारत को अभी कुछ और साल इंतजार करना पड़ेगा। कुछ कोच तो यहां तक कहते हैं भारतीय फुटबॉल टीम सिर्फ 40-45 मिनट तक मैदान में टिक सकती है।
देश के कुछ जाने-माने पूर्व खिलाड़ियों का मानना है कि एआईएफएफ को फीफा कप में खेलने से पहले एशियाई फुटबॉल में सम्मानजनक स्थान पाने का टारगेट रखना चाहिए। जिस दिन भारत महाद्वीप के पहले दस देशों में जगह पा लेगा उसके बाद फीफा
कप में खेलने के रास्ते भी खुल जाएंगे। लेकिन ऐसा तब ही संभव है, जब भारतीय फुटबॉल के कर्णधार ऊंचाई में उड़ना और धड़ाम से गिरना छोड़ देंगे।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |