…….वरना कबड्डी अपनी पहचान खो सकती है!

India no more super power in Kabaddi

प्रो कबड्डी का आठवां सीजन बंगलोर में 22 दिसंबर से शुरू होने जा रहा है जिसमें 12 टीमें भाग ले रही है। कोरोना के नये वैरिएंट और महामारी के खतरे को देखते हुए सभी टीमें बायो बबल में रहेंगी। भले ही स्टेडियम में दर्शकों का प्रवेश वर्जित है लेकिन मुकाबलों के जोरदार होने की उम्मीद बताई जा रही है।

2014 में हुई शुरुआत के बाद से यह लीग लगातार लोकप्रियता अजिर्त कर रही है। लेकिन लीग के अस्तित्व में आने पर जो दावे किए गए थे उनकी हवा निकलती दिखाई पड़ रही है। कोई माने न माने इस लीग के आयोजन के बावजूद भी भारत कबड्डी में सुपर पावर नहीं रहा। पिछले एशियाड के नतीजों से साफ़ हो गया है कि भारतीय कबड्डी शीर्ष से नीचे उतरने लगी है और यदि कुछ माह बाद होने वाले एशियाई खेलों में हमारी पुरुष और महिला टीमें ख़िताब फिर से हासिल करने में नाकाम रहती हैं तो प्रो कबड्डी लीग को देश के कबड्डी प्रेमी ख़ारिज कर सकते हैं।

जकार्ता एशियाड में भारतीय पुरुष टीम ईरान और कोरिया के बाद तीसरा स्थान ही अर्जित कर पाई थी। महिला टीम फाइनल में जरूर पहुँची पर ईरान की महिलाओं ने बाजी मार ली। 2022 के खेल चीन के होंगझोउ शहर में सितम्बर माह में होने हैं। अर्थात ज्यादा वक्त नहीं बचा है। यह न भूलें कि भारतीय पुरुष टीम ने जकार्ता एशियाड से पचले तक बिना कोई मैच हारे नौ स्वर्ण जीते थे। ऐसे में ईरान के हाथों हुई हार को गंभीरता से नहीं लेना बड़ी भूल कही जाएगी। ठीक वैसे ही जैसे कि इंडियन फुटबाल लीग (आईएसएल और आई लीग )का आयोजन भारतीय फुटबाल की गिरावट को नहीं थाम पाया है।

इसमें कोई शक नहीं कि कबड्डी लीग के आयोजन से खेल को नयी पहचान मिली है स्टार स्पोर्ट्स और आयोजक स्कूल कालेज में खेल के लिए संभावनाएं तलाश रहे हैं, जिसमें काफी हद तक कामयाब भी रहे हैं। लेकिन यदि पांच छह देशों के खेल में भी हम नीचे धसकते रहे तो खेल का भविष्य सुरक्षित कदापि नहीं हो सकता। जो खिलाडी कबड्डी लीग के चलते लाखों -करोड़ों में खेल रहे हैं उन्हें संतुष्टि जरूर मिल सकती है लेकिन खेल प्रेमी देश का मान सम्मान गिरते कदापि नहीं देखना चाहेंगे।

चूँकि एशियाड के लिए चंद महीने बचे हैं इसलिए कबड्डी के लिए प्रो लीग से ज्यादा महत्वपूर्ण एशियाई खेल हैं, जहाँ खोई प्रतिष्ठा पाने का मौका रहेगा। यह भी पता चला है कि हमारे खिलाड़ी देश के लिए खेलने कि बजाय लीग को तरजीह देने लगे हैं। उन्हें पैसा और ठाट बाट चाहिए। ईरान को हराना अब आसान नहीं होगा और एक और झटका कबड्डी का कबाड़ा कर सकता है।

अफ़सोस कि बात यह है कि भारतीय कबड्डी में घमासान मचा है। दो अलग अलग गुट अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। लड़ भिड़ रहे हैं, जोकि खेल के लिए अच्छा नहीं है। घर के झगडे नहीं निपटे तो कबड्डी घर घर का खेल नहीं रह जाएगी।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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