… वरना भारत-पाक विश्व हॉकी मानचित्र से गायब हो जाएंगे

India and Pakistan at risk of disappearing from the hockey map

ओडिशा में आयोजित हॉकी विश्व कप से पहले हॉकी इंडिया और देश के हॉकी प्रेमियों ने अपनी टीम को लेकर बड़े बड़े सपने देखे थे , बड़े दावे किए गए लेकिन मेजबान देश पदक तालिका में स्थान नहीं बना पाया । हालाँकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है लेकिन पिछले कई दशकों से यही सब चल रहा है । कभी विश्व हॉकी पर राज करने वाले और अनेकों बार के ओलम्पिक और विश्व चैम्पियन रहे भारत की हॉकी की हालत यह हो गई है कि वर्ल्ड कप और ओलम्पिक में क्वालीफाई करने के लिए खासा पसीना बहाना पड़ता है | यही हाल अपने पडोसी पकिस्तान का भी है ।

पिछले विश्व कप में एशिया से श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला देश कोरिया रहा जिसने आठवां स्थान अर्जित किया और मेजबान भारत संयुक्त नौवां स्थान ही अर्जित कर पाया, जबकि मलेशिया 13 वे और जापान 15वे स्थान पर ठिठक गया । हैरानी वाली बात यह रही कि सर्वाधिक चार बार का विश्व विजेता पकिस्तान क्वालीफाई ही नहीं कर पाया था । एशियाई हॉकी का यह हाल देख कर भले ही एशियाई देशों की हॉकी के ठेकेदार चिंतित न हों लेकिन हॉकी प्रेमी सदमे में हैं क्योंकि उन्हें एशियायी हॉकी की बर्बादी साफ़ नज़र आ रही है ।

ओलम्पिक और विश्व हॉकी के परिणामों पर नज़र डालें तो क्रमशः भारत और पकिस्तान का रिकार्ड़ अन्य देशों से बेहतर रहा है । भारत ने आठ जबकि पकिस्तान ने तीन ओलम्पिक खिताब जीते हैं । विश्व कप में पकिस्तान का रिकार्ड शानदार रहा है उसने चार और भारत ने मात्र एक खिताब जीता । अन्य कोई एशियाई देश ओलम्पिक या विश्व कप में छाप नहीं छोड़ पाया । हाँ जापान ने 1932 के लॉसएंजेल्स खेलों में रजत पदक जरूर पाया । ऐसा इसलिए संभव हो पाया था क्योंकि मात्र तीन देश भारत जापान और अमेरिका ही मैदान में उतरे थे । भारत ने जापान को 11-1 और अमेरिका को 24-1 से हारने का रिकार्ड भी बनाया था ।

भारत ने अपना आठवाँ और तक का आखिरी ओलम्पिक स्वर्ण 1980 के मस्को खेलों में जीता था जबकि पकिस्तान चार साल बाद लास एंजेल्स खेलों में विजेता बना । इसके बाद दोनों देशों का खिताब जीतो अभियान थम गया । विश्व कप में भारत 1975 में विजेता बना तो पकिस्तान को आखिरी खिताब 1994 के सिडनी विश्व कप में नसीब हुआ । इस कामयाबी के बाद दोनों देशों की हॉकी का तेज पतन हुआ और इसके साथ ही एशियाई हॉकी की मौत की उल्टी गिनती भी शुरू हो गई ।।

सच तो यह है कि जब से यूरोपीय देशों ने हॉकी को गंभीरता से लेना शुरू किया है, भारत , पाक और एशियाई हॉकी की कलई खुल गई है । कुछ साल पहले तक नकली घास का बहाना बनाने वाले भारत और पकिस्तान भले ही कोई भी दुखड़ा रोयें लेकिन अब हॉकी उनके हाथों से निकल चुकी है और आने वाले सालों में शायद ही कोई एशियाई देश बड़ी कामयाबी पा सके । कोरिया जापान ,मलेशिया ,चीन आदि देशों में भी दम दिखाई नहीं पड़ता । अर्थात टोक्यो ओलम्पिक का कांसा भारतीय और एशियाई हॉकी की आखिरी निशानी रह जाएगा । डर इस बात का भी है कि भारत और पकिस्तान कहीं विश्व हॉकी मानचित्र से गायब ना हो जाएं ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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