भारत और जर्मनी की फुटबाल की एक प्लेटफार्म पर चर्चा सूरज को दिया दिखाने जैसा है। जहां तक जर्मनी की बात है तो यूरोप का यह देश कई बार का महाद्वीपीय और विश्व चैंपियन रह चुका है तो भारतीय फुटबाल की हालत किसी से छिपी नहीं है। लेकिन जर्मनी में चैंपियन खिलाड़ी कैसे पैदा होते हैं,इस बारे में खुद जर्मन कोचों ने एक साक्षात्कार में बताया कि उनके देश में हर बच्चा फुटबॉलर बनना चाहता है और छोटी उम्र से ही फुटबाल को अपना भविष्य बनाना चाहता है। इसके उलट भारत में क्रिकेटर बनना पहली प्राथमिकता होती है।
भारतीय फुटबाल आज कहाँ खड़ी है, अम्बेडकर स्टेडियम में आयोजित एक फुटबाल प्रोमोशन कार्यक्रम के चलते जर्मनी के कोचों ने स्पष्ट किया। न्यू एक्स कॉर्पोरेशन हाउस ऑफ स्पोर्ट्स और एएस एन एफसी जर्मनी की संयुक्त मेजबानी में आयोजित फुटबाल ट्रेनिंग के चलते जर्मन कोच डैनी टबनर, रोबर्ट फ्रैंक और मैटिस गिरहार्ट ने दो सौ के लगभग खिलाड़ियों के कलीनिक के बारे में जो कुछ कहा, बेहद निराशाजनक है।
जर्मन कोचों ने इंडो जर्मन फुटबाल प्रोत्साहन कार्यक्रम पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 13 से 23 साल तक के भारतीय फुटबॉलर स्किल,स्टेमना, स्पीड और कौशल के मामले में उनके देश के 10-12 साल के खिलाड़ियों जैसे भी नहीं हैं। राजधानी के ममता मॉडर्न, मोती बाग और अन्य कई स्कूलों के खिलाड़ियों ने जर्मनी के कोचों से वह सब सीखा, जोकि यूरोप और लैटिन अमेरिका में शुरुआती सबक के रूप में सिखाया जाता है।
रोबर्ट फ्रैंक के अनुसार भारतीय फुटबाल अभी बहुत पीछे चल रही है। आईएसएल और आई लीग को उन्होंने तब तक बेमतलब बताया जब तक ऐसे आयोजनों को सीधे राट्रीय टीम के साथ नहीं जोड़ा जाता। फ्रैंक ने कलीनिक में शामिल खिलाड़ियों की संख्या को शानदार बताया और कहा कि खिलाड़ी सीखना चाहते हैं लेकिन उनके लिए पर्याप्त प्रोत्साहन की कमी लगती है।
डैनी और मैटिस ने भारतीय खिलाड़ियों के शारीरिक और मानसिक विकास पर नाखुशी ज़ाहिर की तरह और कहा कि सही उम्र में उन्हें मैदान में नहीं उतारा गया। कोचों ने एआईएफएफ के प्रयासों पर सवालिया निशान किया ।
आयोजन समिति के चेयरमैन वसीम अल्वी ने हालांकि भारतीय खिलाड़ियों का बचाव किया और कहा कि महामारी के चलते अधिकाँश खिलाड़ी अपना स्वाभाविक खेल भूल चुके हैं। उन्होंने माना कि जर्मनी के खिलाड़ियों का स्तर बहुत ऊंचा है। पूर्व अंतर राष्ट्रीय कोच बीरुमल ने मौके पर कहा कि हमारे खिलाड़ी साधन सुविधाओं की कमी, उम्र की धोखा धड़ी और चयन में गड़बड़ी के चलते पनप नहीं पा रहे। उन्होंने जहां एक ओर जर्मन कोचों और ख़िलादियों को अभूतपूर्व बताया तो साथ ही कहा कि भारतीय कोच अपनों द्वारा उपेक्षित हैं। उनके सिर पर विदेशी कोच बैठा दिया जाना सरसरा गलत है।
जर्मन कोच मानते हैं कि समय समय पर भारतीय फुटबाल को विदेशी एक्सपर्ट्स की सेवाएं लेनी चाहिए।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |