प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी कह रहें हैं कि भारत 2047 तक विकसित देश बन जाएगा । उनका मानना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास और मजबूती को टॉप गियर पर लाने से भारत वह सब हासिल कर सकता है, जोकि एक विकसित देश कहलाने की जरुरी शर्तें हैं । इसे संयोग ही कहेंगे कि अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन ने भी कुछ ऐसा ही सपना देखा है । नयी टीम ने कार्यभार संभालने के तुरंत बाद रोड मैप जारी किया , जिसमें भारत को 2047 तक विश्व कप फुटबाल में खेलते देखने का सपना संजोया गया है।
जहाँ तक पीएम मोदी के भरोसे की बात है तो देश ने आज़ादी के बाद से लगातार प्रगति की है । यह सही है कि जनसंख्या वृद्धि और बढ़ते भ्रष्टाचार के चलते देश की प्रगति बाधित हुई है लेकिन यह भी सच है कि कभी भारत को जगत गुरु कहा जाता था और भारत पूर्ण विकसित देश जैसा रहा होगा । लेकिन फुटबाल में हम कभी भी बड़ी ताकत नहीं रहे । यह जरूर है कि बीसवीं सदी के पांचवें छठे दशक में भारतीय फुटबाल बेहतर स्थिति में थी । हम भले ही ओलम्पिक ख़िताब नहीं जीत पाए लेकिन चार ओलम्पिक खेलों में भाग लिया और सम्मानजनक प्रदर्शन किया, दो एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक भी जीते ।
ध्यान देने वाली बात यह है कि देश की फुटबाल फेडरेशन ने आज़ादी मिलने के पूरे सौ साल बाद का सपना देखा है । बेशक किसी भी संस्था और खेल संघ को सपने देखने आकलन और अटकबाजी करने का हक़ है । हो सकता है कि फेडरेशन के युवा पदाधिकारियों को अपनी टीम और सपोर्ट स्टाफ से मजबूती मिली हो लेकिन एआईएफएफ पिछले साठ सालों से सपने ही देखती आ रही है पूर्व अध्यक्षों जियाउद्दीन, दास मुंशी और प्रफुल्ल पटेल ने भारतीय फुटबाल प्रेमियों और खिलाडियों को सपने दिखा दिखा कर अपने कार्य काल पूरे किए । दास मुंशी ने 2002 और 2006 तक का टारगेट सेट किया तो प्रफुल्ल पटेल ने 2022 और फिर 2026 में भारत को फीफा कप में भाग लेने का लक्ष्य बनाया था ।
जहाँ तक एआईएफएफ अध्यक्ष कल्याण चौबे की बात है तो वह खुद अच्छे फुटबॉलर रहे हैं और भारतीय फुटबाल को भी गंभीरता से समझते हैं लेकिन 24-25 साल में भारतीय फुटबाल को ज़ीरो से शिखर पर ले जाने का उनका सपना बहुत कम लोगों के गले उतर रहा है, चूँकि भारतीय फुटबाल सालों से अपने चाहने वालों को धोखा देती आ रही है । लेकिन यदि आजादी के सौ साल बाद बहुत कुछ बदल रहा है तो फुटबाल क्यों नहीं बदल सकती?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |