इस बार सौ के पार, लेकिन कैसे?

Hundred this time but how Birmingham 2022 Commonwealth Games

‘इस बार सौ के पार’, पिछले कुछ दिनों से टीवी चैनलों पर यह विज्ञापन धूम मचाए था और फिर यकायक गायब भी हो गया, या गायब कर दिया गया।

जैसा कि विज्ञापन से स्पष्ट है कि भारतीय खिलाड़ियों से बर्मिंघम कामनवेल्थ खेलों में बड़ी कामयाबी की उम्मीद की जा रही है। हालांकि चंद दिन बाद नतीजा सामने होगा। लेकिन इस बार ऐसा क्या खास है कि अपने खिलाड़ियों से हम बहुत ज्यादा की उम्मीद कर रहे हैं? क्या इस प्रकार के खुशगवार परिणाम के बारे में खिलाड़ी और अधिकारी सोच रहे हैं या सरकार और खासकर खेल मंत्रालय अपने खिलाड़ियों की प्रगति को लेकर आश्वस्त है? शायद नीरज चोपड़ा के ओलंम्पिक गोल्ड का नशा उनके सिर चढ़कर बोल रहा ह्योग।

देखा जाए तो सरकार को अधिकाधिक की उम्मीद करनी भी चाहिए। एशियाड और कामनवेल्थ खेलों की तैयारी के लिए खिलाड़ियों पर जमकर खर्च किया गया है। उन्हें विदेश दौरे करवाए जा रहे हैं। खेल बजट में बढ़ोतरी हुई और जिस खेल और खिलाड़ी ने जो मांगा उसे मिल रहा है। लेकिन सौ पदक जीतना इसलिए मुश्किल है क्योंकि इस बार निशाने बाजी और तीरंदाजी कामनवेल्थ से बाहर हैं। खासकर निशानेबाजी में भारत की झोली ठसाठस रही है। तो फिर पदकों का शतक कैसे बन पाएगा?

पिछले प्रदर्शनों पर नजर डालें तो भारतीय दल ने कामन्वेल्थ खेलों में 100 पदकों का आंकड़ा मात्र एक बार छुआ है। सन 2010 के दिल्ली खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने 38 स्वर्ण पदक सहित कुल 101 पदक जीते थे औरपदक तालिका में दूसरा स्थान अर्जित किया था। लेकिन चार साल बाद 2014 में 64 और 2018 में मात्र 66 पदक ही मिल पाए। इस बार जबकि निशानेबाजी और तीरंदाजी सी डब्लू जी का हिस्सा नही हैं पता नहीं हमारे खेल आका क्यों सौ पदक जीतने का दम भर रहे हैं?

कुछ एक खेलों को छोड़ बाकी में कामनवेल्थ का स्तर एशियाड से भी बहुत हल्का है, क्योंकि चीन , जापान और कोरिया जैसे देश इन खेलों का हिस्सा नहीं हैं। इसलिए एशिया की अगुवाई भारत करता आया है। पदक तालिका में ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड , भारत, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा जैसे देशों के बीच होड़ रहती है जोकि ओलंम्पिक जैसे आयोजन में कोसों दूर नजर आते हैं।

जहां तक भारतीय पदकों की बात है तो कुश्ती, मुक्केबाजी, टेबल टेनिस, बैडमिंटन, टेनिस, एथलेटिक, हॉकी और कुछ अन्य खेलों में उम्मीद कर सकते हैं। यदि 65 के आस पास पदक जीत पाये तो काफी रहेगा। तो फिर 100 के पार वाला नारा बिल्कुल बेकार। बेहतर होगा हमारे खेल आका खिलाड़ियों पर दबाव बनाने वाला खेल बंद कर दें। उनसे बहुत ज्यादा की उम्मीद न करें। बस अपना श्रेष्ठ दे कर देश का कर्ज चुकाने के लिए
प्रोत्साहित करें।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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