‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले”, जब कभी भारतीय खेल आकाओं की बात होती है तो ज्यादातर की विदाई कुछ इसी अंदाज में होती है। खेल या खेल संगठन चाहे कोई भी हो उसके शीर्ष पदाधिकारियों को इसी अंदाज में कुर्सी छोड़नी पड़ती है । बहुत काम ऐसे हुए हैं जिन्होंने शराफत और सम्मान के साथ पद त्यागा हो या अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद विनम्रता से पद छोड़ा हो ।
पिछले कुछ सालों में भारतीय खेलों में राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल संगठनों और संघों में घुसपैठ करने और पद नहीं छोड़ने की होड़ सी लगी है । प्राय देखा गया है कि जो कोई महाशय किसी खेल में दाखिल होता है वह अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद भी कुर्सी नहीं छोड़ता । जैसे जैसे वक्त गुजरता है उसका कुर्सी मोह बढ़ता चला जाता है । फिर एक दिन ऐसा भी आता है जब उसके विरुद्ध मोर्चा खड़ा हो जाताहै , उसे खेल से हटने के लिए मजबूर किया जाता है लेकिन वह टस से मस नहीं होता । वह खेल को अपनी बपौती समझ लेता है । और फिर उन साहब को धक्के मार कर बाहर करना भी सम्भव नहीं हो पाता |
फिलहाल भारतीय खेलों में कुछ ऐसे ही महाशयों के कारण घमासान मचा है । उनके कारण देश की खेल व्यवस्था त्राहि त्राहि कर उठी है । कोर्ट कचहरियों में लाखों मामले अनसुलझे पड़े है , जिनमें खेलों से जुड़े बढ़ते विवाद अराजकता फैला रहे हैं । ऐसे में कुछ खेल जहां जहां एक तरफ देश का मान सम्मान बढ़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ खिलाडियों की कामयाबी पर मौज करने वाले खेल प्रमुख देश का सम्मान गिराने में ज़रा भी कसर नहीं छोड़ रहे । तिकड़मबाजी से खेल को हथियाने के बाद उन्हें खेल से खिलवाड़ करने में मजे आने लगते हैं । खिलाडियों की कामयाबी से उनका कद बढ़ने लगता है और एक दिन इस कदर आदम कद हो जाते हैं कि खेल से हटने का नाम नहीं लेते । कुछ लोग तो मृत्युशैयय्या के करीब होने के बावजूद कुर्सी को मजबूती से पकडे रहते हैं और वेंटिलेटर पर ही वीरगति को प्राप्त होते हैं |
भारतीय ओलम्पिक संघ, फुटबाल महासंघ, हॉकी इंडिया और दर्जनों अन्य खेलों के उदाहरण ताज़ा हैं । खिलाडियों के परम आदरणीय, उनके लिए पिता तुल्य, खेल प्रमुखों को किस कदर लज्जित होकर पद छोड़ने पड़े हैं किसी से छिपा नहीं है । ये वही शख्स हैं जो खेल की सत्ता पाते ही विनम्र भाव से खेल की सेवा और खिलाडियों को अपने बच्चों की तरह प्यार दुलार देने का वादा करते हैं लेकिन शायद ही कभी किसी ने अच्छे और नेक प्रशासक का धर्म निभाया हो ।
आज भारतीय खिलाडी अपनी मेहनत से पदक और प्रतिष्ठा पा रहे हैं, देश का मान सम्मान बढ़ा रहे हैं , जिसका श्रेय उनकी मेहनत और माता पिता के त्याग और समर्पण को जाता है और मलाई खा रहे हैं धूर्त नेता और प्रशासनिक अधिकारी । लूट का खेल उन्हें इस कदर भा जाता है कि कुर्सी छोड़ने का दिल ही नहीं करता , और फिर वही होता है जोकि इस देश में खेल के नाम पर चल रहा है ।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |