वाटिका एफसी: दूध के दांत भी नहीं टूटे, फिर यह करिश्मा कैसे ?

How Vatican dominated Delhi football

दिल्ली की फुटबाल फिलहाल दो कारणों से देश भर चर्चा में है । पहली यह कि दिल्ली साकर एसोसिएशन द्वारा पहली प्रीमियर फुटबाल लीग का आयोजन किया जा रहा है जिसने देश भर के फुटबाल प्रेमियों का ध्यान खींचा है । यही लीग दिल्ली की चर्चा का दूसरा कारण भी कही जा रही है । इसलिए क्योंकि राजधानी का एक नवगठित क्लब खिताब का प्रबल दावेदार बनकर उभरा है , जिसक नाम है वाटिका एफसी ।

राजधानी के क्लबों की शक्ति परीक्षा में अव्वल स्थान पाना सचमुच गौरवपूर्ण है, वह भी उस क्लब का चैम्पियन बनना जोकि हाल फिलहाल ही दिल्ली और देश की धरती पर अवतरित हुआ है और जिसके दूध के दांत भी नहीं टूटे हैं । है न कमाल की बात ; लेकिन सबसे बड़ा कमाल यह है कि वाटिका एफसी में खेलने वाले सभी खिलाडी उस दिल्ली के हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि देश की राजधानी ने अच्छे खिलाडी पैदा करना बंद कर दिया है । तो फिर वाटिका को दिल्ली के अपने खिलाडियों ने कैसे चैम्पियन बना दिया ? फिलहाल इस विषय की चर्चा अगले लेख में करेंगे , क्योंकि वाटिका का खिताब जीतना दिल्ली की फुटबाल के लिए न सिर्फ हैरान करने वाला परिणाम है अपितु एक सन्देश भी है ।

सवाल यह पैदा होता है कि 35 लाख की कीमत पर दिल्ली प्रीमियर लीग में सीधा प्रवेश पाने वाले वाटिका एफसी ने आखिर यह कमाल कैसे कर दिया? कैसे उसने चुपचाप बिना पदचाप के दिल्ली के तमाम क्लबों को हैसियत का आइना दिखा दिया ? यह कमाल किया है 32 साल के एक खिलाडी ने जोकि वाटिका एफसी में खिलाडी के साथ साथ कोच की भूमिका भी निभा रहा है, नाम है कुलभूषण । कुल भूषण दिल्ली के मोतीबाग स्कूल का प्रॉडक्ट है, वह स्कूल जिसने गुरु श्रेष्ठ स्वर्गीय रमेश चन्द्र देवरानी और तत्पश्चात पीएस पुरी की देख रेख में दिल्ली और देश की फुटबाल में बड़ा नाम सम्मान कमाया ।

कुल्लू दिल्ली ऑडिट में कार्यरत है और अपने कुछ शिष्यों के आग्रह पर उसने वाटिका एफसी का कोच बनना स्वीकारा और वह कर दिखाया जोकि आज तक दिल्ली का कोई भी खिलाडी कोच नहीं कर पाया है । खुद कुल्लू के अनुसार उसने वाटिका एफसी के आनर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रजनीश कुमार , क्लब टीम में शामिल उनके सुपुत्र कुशाग्र श्रीवास्तव के विश्वास पर खरा उतरने के लिए भरसक प्रयास किया , जिसे उसके खिलाडियों ने बल दिया और साबित कर दिखाया । खुद रजनीश के अनुसार कुल्लू ने उनकी टीम को बड़ी पहचान दिलाई और खुद कुल्लू को भी नयी पहचान मिली है |

दिल्ली एफसी, गढ़वाल एफसी, सुदेवा , रॉयल रेंजर्स जैसे बड़े और कामयाब नामों के बावजूद वाटिका कैसे ख़िताब की दावेदार बन सकी, इस बारे में कुल्लू कहता है कि टीम प्रबंधन से जो कुछ माँगा खिलाडियों को मिला । उनकी सबसे बड़ी ताकत टीम अनुशासन रहा ।जिसे कायम रखने में रजनीश सर और सभी सदस्यों ने सहयोग दिया और इसी टीम भावना से वाटिका महक उठी है ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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