जब कभी किसी देश के खेलों की कामयाबी की चर्चा होती है तो जानकार और विशेषज्ञ सबसे पहले उस देश के स्कूली खेल ढांचे की चीरफाड़ करते हैं। जो देश अपने स्कूली खेलों को ज्यादा महत्व देता है उसका खेल रिकार्ड उतना बेहतर पाया गया है। अमेरिका,चीन, जापान, रूस, जर्मनी आदि देश स्कूल से ही खिलाड़ियों को तराशना शुरू करते हैं और बहुत छोटी उम्र में चैंपियन खिलाड़ी पैदा करने में कामयाब हो जाते हैं।
दूसरी तरफ भारत महान है, जिसके खेल आका बड़े बड़े दावे करते हैं। खेल महाशक्ति बनने की हुंकार भरते हैं लेकिन स्कूल स्तर से ही गंदी राजनीति का खेल शुरू हो जाता है। यह जानकर हैरानी होगी कि अपने देश में स्कूल स्तर पर दो और दो से ज्यादा संस्थाएं अस्तित्व में हैं और उनके अपने अपने दावे भी हैं। सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त स्कूल गेम्स फेडरेशन आफ इंडिया(एस जीएफ आई) दो गुटों में बंटी है। और दोनों ही धड़े खुद को असली होने का दम भरते हैं। कौन असली है और कौन नकली यह खिलाड़ी नहीं जान सकते। लेकिन अफसोस इस बात का है कि खेल मंत्रालय भी मूक दर्शक और लाचार बना हुआ है। दोनों ही गुटों के अपने अपने दावे हैं। दोनों के अपनी मर्जी से खेल कैलेंडर तैयार कर लिया है। दोनों गुटों पर मनमर्जी के नये खेलों की खरीद फरोख्त के आरोप लग रहे हैं। खिलाड़ी, मां बाप, कोच और राज्य इकाइयां असमंजस में हैं।
आरोप प्रत्यारोपों का खेल जोरों पर चल रहा है और बेचारा खिलाड़ी ठगा सा महसूस कर रहा है। किसका हाथ पकड़े, किसके साथ जाए, समझ नहीं पा रहा।
अक्सर यह पूछा जाता है कि भारत स्कूल स्तर पर चीन, अमेरिका, जापान जैसे चैंपियन तैयार क्यों नहीं कर पाता। सीधा सा जवाब यह है कि जिस देश की बुनियाद ही गुटबाजी की शिकार हो वह खेलों में कैसे तरक्की कर सकता है।
टोक्यो ओलंम्पिक की कामयाबी को बढ़ा चढ कर पेश करने वाले अब तो कतई स्कूली खेलों की खबर नहीं लेने वाले। उन्हें गलत फहमी हो गई है। उन्हें लगता है कि भारतीय खेल एक गोल्ड से सातवें आसमान पर जा चढ़े हैं।
दूसरी तरफ जिस उम्र में हमारे खिलाड़ी हल्की फुल्की चमक बिखेरते हैं, चैंपियन राष्ट्रों के खिलाड़ी आसमान पर चढ़ कर नीचे उतरने लगते हैं। उनका स्थान लेने के लिए दर्जनों खिलाड़ी बारी के इंतजार में खड़े होते हैं, क्योंकि उन्नत देशों का स्कूली खेल ढांचा बहुत मजबूत है।
स्कूली खेलों का गड़बड़ झाला भारतीय खिलाड़ियों का सबसे कमजोर और दुखद पहलू है, जिसे प्राथमिकता से लेने की जरूरत है। उम्र की धोखाधड़ी, कदम कदम पर मिली भगत का खेल और मेजबान द्वारा मनमानी से खेल के परिणाम को प्रभावित करना एसजीएफआई का चरित्र है। यदि समय रहते स्कूली खेलों के लुटेरों और देश का भविष्य खराब करने वालों पर नकेल नहीं डाली गई तो शायद भारत खेल महाशक्ति बनने का ख्वाब देखता रह जाएगा।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |
Exactly Sajwan ji,
this is the bitter truth of Indian school sports.
Everyone knew about the corruption in SGFI but no one dares to indulge and mess with these ‘BAAGADBILLAS’.