दबाव की राजनीति महिला खिलाडियों के लिए घातक

manika batra and lovlina borgohain

भारतीय खेलों में महिला खिलाडियों की भागीदारी लगभग पुरुषों की बराबरी की है और महिला खिलाडी भी पुरुषों की तरह कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ रही हैं| भले ही कोई भी महिला खिलाडी अभी तक ओल्य्म्पिक गोल्ड नहीं जीत पाई है लेकिन कर्णम मल्लेश्वरी से शुरू हुई ओलम्पिक पदक की कहानी मैरीकॉम, सायना नेहवाल, साक्षी मालिक और लवलीना से होती हुई आगे बढ़ चली है।

महिला खिलाडियों की कामयाबी ने उन्हें पुरुष खिलाडियों की बराबरी पर ला खड़ा किया है और अब उन्हें यह आरोप लगाने का मौका कदापि नहीं मिल रहा कि पुरुषों कि तुलना में उन्हें कमतर आँका जा रहा है । इस देश में जितने अवसर, मान सम्मान, पैसा, पुरस्कार और सुविधाएं पुरुषों को प्राप्त हैं महिलाऐं भी वह सब पा रही हैं । फिरभी महिला खिलाडी नाराज क्यों हैं? क्यों वे मनमानी कर रही हैं और और अपनी छोटी छोटी मांगों के लिए शासन प्रशासन , टीम प्रबंधन और साथी खिलाडियों से लड़ भिड़ रही हैं?

हाल ही में टेबल टेनिस की जानी मानी खिलाडी मोनिका बत्रा ने कॉमनवेल्थ खेलों में खराब प्रदर्शन के लिए सार्वजनिक माफ़ी मांगी है । वह एकल और युगल में अपने खिताब का बचाव नहीं कर पाई और बहुत भावुक होकर उसने अपने प्रशंसकों से भविष्य में बेहतर परिणाम देने का वादा किया है । टेबल टेनिस से जुड़े अधिकारीयों और खिलाडियों को इस बात की नाराजगी है कि मोनिका जितनी बड़ी खिलाडी है उससे कहीं ज्यादा ऊर्जा विवादों में खर्च करती आई है| कुछ इसी प्रकार कि बातें ओलम्पिक पदक विजेता मेरीकॉम , साक्षी मालिक, विनेश फोगाट, एथलीट हिमा दास , दुति चंद , मुक्केबाज लवलीना और कुछ हॉकी खिलाडियों के बारे में भी कि जाती रही हैं जोकि समय समय पर बेवजह विवादों में फंसीं ।

कुछ साल पहले जब जिम्नास्ट दीपा करमारकर कि तूती बोलती थी तो उसने और उसके कोच ने तरह तरह कि बयानबाजी कर साईं और और सरकार से हर सुविधा पाई , खेल रत्न, पद्म श्री और द्रोणाचार्य अवार्ड पा गए लेकिन देश के लिए कौन सा बड़ा पदक जीता किसी को पता नहीं है । भले ही हिमा दास ने जूनियर स्तर पर अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन विदेशों में रिकार्ड तोड़ प्रदर्शन करने वाली हमारी यह एथलीट ओलम्पिक और विश्व स्तर पर कहाँ है बताने कि जरुरत नहीं है ।यही कहानी दुति चंद के साथ रही है । साक्षी मालिक, विनेश फोगाट , हॉकी खिलाडी और कप्तान रानी रामपाल और दर्जन भर अन्य बड़ी खिलाडी जब तब विवादों में घिरीं लेकिन उन्हें अच्छे रिकार्ड के चलते माफ़ किया जाता रहा । ओलम्पिक पदक विजेता लवलीना ने बर्मिंघम में जो कुछ किया शायद उसके प्रदर्शन पर असर पड़ा और वह खाली हाथ लौटी|

ओलम्पिक मैटेरियल मानी जा रही निकहत जरीन का रास्ता उस चैम्पियन ने वर्षों तक रोके रखा जिसे देश की महिला खिलाडियों का आदर्श कहा जाता है । उसके रहते और कई प्रतिभाओं का करियर असमय समाप्त हो गया। हैरानी वाली बात यह है कि जो महिला खिलाडी जितने बड़े विवादों में रहीं सरकारों ने दबाव के चलते उन्हें खेल रत्न, पद्मश्री और अन्य बड़े सम्मान रेबडियों कि तरह बांटे , जिसका परिणाम यह रहा कि हर खिलाडी अपनी फेडरेशन, कोच, और साथी खिलाडियों पर दबाव बना कर वह सब पा गई, जिसकी हकदार नहीं थी ।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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