भारत और पकिस्तान के बीच जब कभी भी कोई क्रिकेट मैच खेला जाता है तो दोनों तरफ के क्रिकेट प्रेमियों का जोश देखते ही बनता है । हालाँकि यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है लेकिन एकदिनी और छोटे फॉर्मेट वाले मैचों के चलते जहां एक तरफ क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ी है तो भारत और पकिस्तान के बीच की प्रतिद्वंद्विता भी लगातार बढ़ रही है । चूँकि दोनों ही एक दूसरे से हारना नहीं चाहते इसलिए खेल और संघर्ष के स्तर में भी बढ़ोतरी हुई है ।
क्रिकेट से पहले भारत और पाकिस्तान के बीच हॉकी मुकाबले खासे चर्चित थे । खासकर आज़ादी मिलने के बाद जब दोनों देश विश्व कप और एशियाड में आमने सामने हुए तो खेल का स्तर कुछ सालों तक ऊपर उठा और फिर अचानक इस कदर गिरा कि दोनों देश ओलम्पिक और विश्व कप में अपना शीर्ष प्रदर्शन नहीं दोहरा पा रहे हैं । हालत इतने बदतर हो गए कि जिस पकिस्तान की कभी तूती बोलती थी वह इक्कीसवीं सदी में दो बार ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई तक नहीं कर पाया | इसके लिए एक दो नहीं कई कारण जिम्मेदार हैं |
एक ज़माना था जब भारत और पकिस्तान की हॉकी टीमों के बीच खेले जाने वाले मैचों में स्टेडियम खचाखच भरे होते थे | यह सिलसिला अस्सी के दशक तक चलता रहा लेकिन पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के हॉकी प्रेमियों ने मैदान की तरफ रुख करना छोड़ दिया है । इसलिए क्योंकि भारत और पकिस्तान इस खेल की बड़ी ताकतें नहीं रहे, इसलिए क्योंकि दोनों देश ओलम्पिक और विश्व विजेता नहीं हैं और दोनों की हॉकी का कद बहुत छोटा हो गया है|
1947 में देश के आज़ाद होने से पहले भारत ने लगातार तीन ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीते । तब ध्यान चंद और रूप सिंह का साथ देने के लिए कई प्रतिभावान मुस्लिम खिलाडी टीम का हिस्सा थे । इस गठबंधन ने 1928 , 32 और 36 में ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीत कर भारतीय हॉकी का नाम रोशन किया | आज़ादी के बाद कुछ एक बड़ी सफलताएं मिलीं लेकिन ताकत और प्रतिभा के बंटवारे से दोनों देशों के हालात खराब होते चले गए। फिर एक दिन ऐसा भी आया जब भारत और पकिस्तान अघोषित तौर पर हॉकी की बड़ी ताकत नहीं रहे । सही मायने में दोनों देशों ने एशियाई हॉकी को शर्मसार किया है|
दो दिग्गज देशों की हालत इसलिए खराब हुई क्योंकि हॉकी के कर्णधारों ने पद का दुरूपयोग किया और साल दर साल विश्व और ओलम्पिक चैम्पियन पिछड़ते चले गए । दोनों देशों की हॉकी फेडरेशनों के नाकारापन के चलते भारत और पकिस्तान की हॉकी ने उल्टी चाल चली और उससे कहीं तेज रफ़्तार से क्रिकेट ने अपने लिए जगह बनाई और आज दोनों देशों में क्रिकेट पहला और शीर्ष खेल बन गया है | सच तो यह है कि इस दौड़ में हॉकी बहुत पीछे छूट गई है |
आज बेल्जियम, अर्जेंटीना, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड जैसे देश विश्व हॉकी पर छाए हैं और जो कभी विश्व और ओलम्पिक चैम्पियन थे वो क्रिकेट को कोस रहे हैं। लेकिन क्रिकेट की कोई गलती नहीं क्योंकि उसने प्रगति की राह चुनी और अपना अलग मुकाम बना लिया।
भारत और पाकिस्तान की हॉकी को सोच लेना होगा की एक दूसरे को प्रोत्साहन देने के लिए संयुक्त प्रयास जरूरी हैं। दोनों देश आज भी बड़ी ताकत बन सके हैं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |