फुटबाल कैसे बुरे लोगों का खेल बन गया है !

Why Indian media is annoyed with football

कुछ माह पहले गठित अखिल भरतीय फुटबाल संघ (एआईएफएफ) देश में फुटबाल सुधार के लिए हर संभव प्रयास कर रही है । फेडरेशन ने बाकायदा रोड मैप भी तैयार किया है जिस पर काम शुरू हो गया है। फेडरेशन के प्रयासों को बल देने में देश की राजधानी दिल्ली अन्य प्रदेशों की तुलना में बहुत आगे नज़र आती है । एआईएफएफ के वर्तममान महासचिव शाजी प्रभाकरन के डीएसए अध्यक्ष रहते दिल्ली की फुटबाल में बहुत कुछ नया देखने को मिला था जिसे डीएसए बखूबी आगे बढ़ा रही है लेकिन पिछले कुछ समय से स्थानीय लीग मुकाबलों में फुटबाल की एक ऐसी भद्दी तस्वीर उभर कर आ रही है , जिसे देख कर फुटबाल प्रेमी , खिलाडी , कोच , रेफरी और क्लब अधिकारी डरे सहमे हैं ।

आपने नूरा कुश्ती के बारे में तो सुना ही होगा । भारत में इन कुश्तियों का जन्म सिने स्टार और नामी पहलवान दारा सिंह के युग में या उनसे कुछ पहले के दौर में था । इन कुश्तियों को साक्षात् देखने वालों के अनुसार नूरा कुश्तियों में हार जीत पहले से तय होती थी । पब्लिक को मनोरंजन के नाम पर फ़र्ज़ी कुश्तियां लड़ाई- दिखाई जाती रहीं । यह चलन सालों साल चलता रहा । खासकर, मिटटी की कुश्तियों में पहलवान घंटों लड़ने के बाद भी अजेय रहते थे या नतीजे पहले से तय होते थे । लेकिन जब से ऐसी कुश्तियों पर लगाम कसी गई , भारतीय पहलवानों की कामयाबी का ग्राफ उठा और अब हमारे पहलवान विश्व चैम्पियन बन रहे हैं और ओलम्पिक पदक भी जीत रहे हैं ।

बेशक भारत में फुटबाल भी कुछ कुछ नूरा कुश्ती की दर्ज पर खेली जा रही है, जिसका सीधा असर राष्ट्रीय टीम के प्रदर्शन को भी प्रभावित कर रहा है । हालाँकि मिली भगत को साबित करना आसान नहीं हैं लेकिन देशभर में अधिकांश राज्य फुटबाल इकाइयां स्थानीय फुटबाल लीग और अन्य आयोजनों में क्लबों और खिलाडियों को “फ़ाउल प्ले” के साथ पकड़ा जा सकता है । जरुरत गंभीरता दिखाने और साफ़ नीयत की है। फिलहाल दिल्ली साकर एसोसिएशन के नये अध्यक्ष अनुज गुप्ता ने पद सँभालते ही ऐलान कर दिया है कि डीएसए बहुत जल्द एक विजिलेंस कमेटी बना कर खेल में व्याप्त अनियमितता और अव्यवस्था पर लगाम कसने जा रही है। ज़ाहिर है धुंआ उठा है तो आग भी जरूर लगी होगी, जिसे फैलने से रोकना होगा ।

इसमें दो राय नहीं कि दिल्ली की फुटबाल में बेबी लीग से लेकर प्रीमियर लीग तक दर्जन भर आयोजन हो रहे हैं , जोकि शुभ लक्षण है लेकिन जब पूर्व पदाधिकारियों से लेकर कार्यकारिणी सदस्य क्लब अधिकारी, कोच , खिलाडी और फुटबाल प्रेमी खेल से खिलवाड़ करने और मिल कर खेलने के आरोप लगाते हैं तो मामले की गंभीरता को समझने की जरुरत है । यदि समय रहते कड़े कदम नहीं उठाए जाते तो दिल्ली और तमाम प्रदेशों की फुटबाल प्रभावित हो सकती है । बेहतर होगा एआईएफएफ खुद पहल करे, क्योंकि फर्ज़ीवाड़े का फुटबाल में कोई स्थान नहीं है ।

भारतीय फुटबाल के कर्णधारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि दिल्ली या किसी भी प्रदेश में यदि लीग फुटबाल सट्टेबाजों और असमाजिक तत्वोँ के हाथ का खिलौना बनती है तो असर आई लीग और आईएसएल पर भी पड सकता है। कहा तो यह भी जा रहा है कि ये आयोजन भी पाक साफ नहीं रह गए हैं।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
Share:

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *